हर बदलाव के लिए प्रतिपक्ष जरूरी है। प्रतिपक्ष यानी राजकाज और राज्य सत्ता का वैकल्पिक नजरिया, उसकी वैकल्पिक रूपरेखा । सत्ता के विरोध या विपक्ष का गठजोड़ भी शायद तभी कारगर होता है। सत्ता में कायम रहने के लिए भी विपक्ष के बरक्स मजबूत प्रतिपक्ष की दरकार होती है। आजाद भारत में जब जब सत्ता परिवर्तन हुआ है, प्रतिपक्ष के बेहतर एजेंडे के साथ तमाम छोटीबड़ी राजनैतिक-सामाजिक ताकतों के गठजोड़ से ही संभव हुआ है। जिसका जितना बड़ा गठजोड़, मोटे तौर पर उसकी जीत होती रही है। आज के राजनैतिक घटनाक्रमों पर गौर करें तो सब कुछ इसी राजनैतिक एहसास के इर्द-गिर्द घुमड़ रहा है। चाहे पटना में जनता दल (यूनाइटेड) या जदयू के नेता, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल या राजद के नेता, उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की अगुआई में विपक्षी पार्टियों के नेताओं की बैठक हो; या फिर केंद्रीय सत्ता में मौजूद भारतीय जनता पार्टी या भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार के, बकौल विपक्ष, गैर-भाजपा सरकारों के लिए मुश्किल खड़ा करने के तौर-तरीके और विपक्ष की लगभग सभी पार्टियों के नेताओं पर ईडी-सीबीआइ का फंदा डालना हो; या छोटी-छोटी पार्टियों-समूहों को फिर से अपने पाले में वापस ले आने की कोशिश हो- ये सब उसी प्रतिपक्ष के एजेंडे और गठजोड़ को तैयार करने की रणनीतियां हैं जिनके सहारे सत्ता में कायम रहना या उसे हासिल करना मुमकिन है।
Denne historien er fra July 10, 2023-utgaven av Outlook Hindi.
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नई लीक के सूत्रधार
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