तरक्की का भुलावा तबाही को बुलावा
Outlook Hindi|August 07, 2023
जलवायु परिवर्तन, धारासार बारिश और भूस्खलन की तबाही का चश्मदीद इस साल ऐसी घटनाओं से एक हद तक अनजान हिमाचल प्रदेश बना और लगभग समूचा उत्तर भारत बाढ़ में डूबने उतराने लगा, हिमालय यही चेतावनी दूसरे इलाकों में दे चुका है लेकिन विकास की धारा अनसुना करने की जिद पर अड़ी, क्या है हल?
अभिषेक श्रीवास्तव
तरक्की का भुलावा तबाही को बुलावा

बाढ़ का नाम सुनते ही जेहन में बिहार, असम, बंगाल की तस्वीर सहज घूम जाती है। कुछेक साल से उत्तराखंड भी इस शब्द की अर्थछवियों में जुड़ गया है। हिमाचल प्रदेश में बाढ़ हमारे जेहन का हिस्सा नहीं रही । हिमाचल के लोगों को भी याद नहीं कि इस बार जो घटा है, वैसा पिछली बार कब हुआ था। कोई 1995 कह रहा है, कोई 1978, तो कोई कुल्लू के गजेटियर के सहारे 1905 तक का जिक्र कर रहा है। स्मृतियां अपनी-अपनी हैं, लेकिन अनुभव सबके एक- कि जो तबाही अबकी हुई है वह कभी नहीं हुई थी। अनुभव के पीछे के कारण भी सबके एक हैं- देवों की धरती पर आई यह आपदा दैवीय नहीं है, मनुष्य की पैदा की हुई है।

इंसानी हरकतें दो कारणों से ही तबाही का सबब बनती हैं। या तो वह इतिहास से जान-बूझकर सबक नहीं लेता या फिर उसकी स्मृति बहुत छोटी होती है। हिमाचल में बाढ़ का इतिहास तो बुजुर्गों को भी ठीक से याद नहीं, लेकिन बीते डेढ़ दशक में की गई हरकतों की स्मृतियां भी सिरे से गायब हैं। यह दिक्कत केवल लोगों की नहीं, सरकारी अमले की भी है। शायद इसीलिए कुल्लू जिले के सैंज में बीते 5 जून को आपदा प्रबंधन की जो मॉक ड्रिल हुई थी, उसमें केवल आग और भूकम्प जैसी आपदाओं का पूर्वाभ्यास किया गया। बाढ़ का जिक्र तक नहीं आया।

Denne historien er fra August 07, 2023-utgaven av Outlook Hindi.

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