आम चुनाव हैं लेकिन चुनाव में सवाल लोकतंत्र का है और लोकतंत्र के इस अखाड़े में चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक टकरा रहे हैं। कहीं चुनाव आयोग की खामोशी तो कहीं सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार को नोटिस थमाना। पहली बार चुनाव लड़ने वाले राजनैतिक गठबंधनों में पार्टियों की संख्या रिकॉर्ड-तोड़ है। एनडीए में भजपा के साथ 44 पार्टियां तो ‘इंडिया’ गठबंधन में कांग्रेस के साथ 29 राजनैतिक दल हैं। बाकी दर्जन भर राजनैतिक दल अपने-अपने बूते हैं। लेकिन एक तरफ चुनावी अखाड़े में नरेंद्र मोदी की छवि पार्टियों से बड़ी हो चुकी है, तो दूसरी तरफ राहुल गांधी चुनावी दौड़ को भी विचारों में लपेटकर जीत-हार से दूरी बना चुके हैं। लेकिन लोकतंत्र का अखाड़ा चुनावी राजनीति का ऐसा हथियार बन चुका है, जिसमें निशाने पर चुनाव आयोग है, तो मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता है।
याद कीजिए, आजादी के बाद से देश में कभी कोई चुनाव ऐसा हुआ नहीं कि चुनाव आयोग की भूमिका और सुप्रीम कोर्ट के फैसले चुनाव को प्रभावित करने वाले हो जाएं। विपक्ष का गठबंधन चुनाव आयोग की घेराबंदी यह कहकर करे कि सभी के लिए एक बराबर अवसर होना चाहिए, जो नहीं हो रहा है। निशाने पर चुनाव आयोग को लेने में सुप्रीम कोर्ट भी नहीं हिचके। चुनावी फंडिग यानी बॉन्ड से लेकर ईवीएम तक पर नोटिस चुनाव आयोग को थमा दिया जाए।
इस चुनावी अखाड़े में कोई भी कह सकता है कि आजादी के 75 साल में किसी भी चुनाव में कांग्रेस इतनी कमजोर कभी नहीं रही कि उसे क्षत्रपों के सामने समझौता करने के लिए झुकना पड़े। आजादी के बाद के हर चुनाव में विपक्ष नजर आया लेकिन कभी इतना कमजोर नहीं दिखा, जितना आज हो चला है। कह सकते हैं कि लगातार दो चुनाव, वह भी बहुमत के साथ जीतने वाली सत्ता तीसरे चुनाव में कहीं ज्यादा ताकतवर होकर चुनाव मैदान में उतरे यह स्थिति भी इससे पहले कभी नहीं रही। तो, क्या चुनाव आयोग की भूमिका और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ही 2024 की राजनैतिक राह तय करेंगे।
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मूर्धन्य कलाकार मोहन अगाशे की शख्सियत के कई पहलू हैं। एक अभिनेता के बतौर उन्होंने समानांतर सिनेमा के कई प्रतिष्ठित निर्देशकों के साथ काम किया। घासीराम कोतवाल (1972) नाटक में अपनी भूमिका के लिए वे खास तौर से जाने जाते हैं। वे मनोचिकित्सक भी हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर उन्होंने कई फिल्में बनाई हैं। वे भारतीय फिल्म और टेलिविजन संस्थान (एफटीआइआइ) के निदेशक भी रह चुके हैं। उनके जीवन और काम के बारे में हाल ही में अरविंद दास ने उनसे बातचीत की। संपादित अंशः
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कारोबारी दायरे के भीतर उन्हें विनम्र और संकोची व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, जो धनबल का प्रदर्शन करने में दिलचस्पी नहीं रखता और पशु प्रेमी था
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मुंबई पर 2011 में हुए हमले के बाद पकड़े गए अजमल कसाब के खिलाफ सरकारी वकील रहे उज्ज्वल निकम 1993 के मुंबई बम धमाकों, गुलशन कुमार हत्याकांड और प्रमोद महाजन की हत्या जैसे हाइ-प्रोफाइल मामलों से जुड़े रहे हैं। कसाब के केस में बिरयानी पर दिए अपने एक विवादास्पद बयान से वे राष्ट्रीय सुर्खियों में आए थे। उन्होंने 2024 में भाजपा के टिकट पर उत्तर-मध्य मुंबई से लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गए। लॉरेंस बिश्नोई के उदय और मुंबई के अंडरवर्ल्ड पर आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने उनसे बातचीत की। संपादित अंश:
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