पहला कान फिल्म फेस्टिवल सन 1946 में आयोजित हुआ था। इसमें निर्देशक चेतन आनंद की फिल्म नीचा नगर दिखाई गई थी। तब इसकी बहुत चर्चा हुई थी। यह उस दौर की बात है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सिनेमा को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी। यहां कमाल का सिनेमा बनने के बावजूद उस समय देश की प्राथमिकता कुछ और थी। उस समय भारत आजादी हासिल करने के लिए अंतिम एवं निर्णायक संघर्ष कर रहा था। नीचा नगर में कामिनी कौशल, अविभाजित भारत में जन्मे रफी पीर और निर्देशक चेतन आनंद की पत्नी उमा आनंद ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं। कामिनी कौशल की यह पहली फिल्म थी, जिन्होंने बाद में हिंदी सिनेमा में ऊंचा मुकाम हासिल किया। रफी पीर ने फिल्म में नायक की भूमिका निभाई। नीचा नगर समाज में हाशिये पर जीवन जीने वाले लोगों की कहानी थी। एक तरह से यह फिल्म मशहूर रूसी लेखक मक्सिम गोर्की के नाटक द लोअर डेप्थ्स का भारतीय पृष्ठभूमि में हिंदी फिल्मी रूपांतरण था। नीचा नगर उस घुटन को प्रतिबिंबित करने में सफल रही जो उस समय हमारे समाज में व्याप्त थी। नीचा नगर को कान फिल्म फेस्टिवल में ग्रां प्री डू फेस्टिवल इंटरनेशनल डू फिल्म अवॉर्ड से नवाजा गया था।
कान फिल्म फेस्टिवल में 1946 से शुरू हुए भारतीय फिल्मी सफर ने लंबी यात्रा तय की है। 1946 में नीचा नगर, 1952 में वी. शांताराम की अमर भूपाली, 1953 में राज कपूर की आवारा, 1958 में सत्यजीत रे की पारस पत्थर, 1974 में एम.एस. सथ्यु की गर्म हवा, 1983 में मृणाल सेन की खारिज, 1994 में शाजी एन करुण की स्वाहम से होते हुए यह सफर 2024 में पायल कपाड़िया की ऑल वी इमैजिन एज लाइट तक पहुंच गया है।
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शहरनामा - मधेपुरा
बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित, अपनी ऐतिहासिक धरोहर, सांस्कृतिक वैभव और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध मधेपुरा कोसी नदी के किनारे बसा है, जिसे 'बिहार का शोक' कहा जाता है।
डाल्टनगंज '84
जब कोई ऐतिहासिक घटना समय के साथ महज राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा बनकर रह जाए, तब उसे एक अस्थापित लोकेशन से याद करना उस पर रचे गए विपुल साहित्य में एक अहम योगदान की गुंजाइश बनाता है।
गांधी के आईने में आज
फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई के दो पात्र मुन्ना और गांधी का प्रेत चित्रपट से कृष्ण कुमार की नई पुस्तक थैंक यू, गांधी से अकादमिक विमर्श में जगह बना रहे हैं। आजाद भारत के शिक्षा विमर्श में शिक्षा शास्त्री कृष्ण कुमार की खास जगह है।
'मुझे ऐसा सिनेमा पसंद है जो सोचने पर मजबूर कर दे'
मूर्धन्य कलाकार मोहन अगाशे की शख्सियत के कई पहलू हैं। एक अभिनेता के बतौर उन्होंने समानांतर सिनेमा के कई प्रतिष्ठित निर्देशकों के साथ काम किया। घासीराम कोतवाल (1972) नाटक में अपनी भूमिका के लिए वे खास तौर से जाने जाते हैं। वे मनोचिकित्सक भी हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर उन्होंने कई फिल्में बनाई हैं। वे भारतीय फिल्म और टेलिविजन संस्थान (एफटीआइआइ) के निदेशक भी रह चुके हैं। उनके जीवन और काम के बारे में हाल ही में अरविंद दास ने उनसे बातचीत की। संपादित अंशः
एक शांत, समभाव, संकल्पबद्ध कारोबारी
कारोबारी दायरे के भीतर उन्हें विनम्र और संकोची व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, जो धनबल का प्रदर्शन करने में दिलचस्पी नहीं रखता और पशु प्रेमी था
विरासत बन गई कोलकाता की ट्राम
दुनिया की सबसे पुरानी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में एक कोलकाता की ट्राम अब केवल सैलानियों के लिए चला करेगी
पाकिस्तानी गर्दिश
कभी क्रिकेट की बड़ी ताकत के चर्चित टीम की दुर्दशा से वहां खेल के वजूद पर ही संकट
नशे का नया ठिकाना
कीटनाशक के नाम पर नशीली दवा बनाने वाले कारखाने का भंडाफोड़
'करता कोई और है, नाम किसी और का लगता है'
मुंबई पर 2011 में हुए हमले के बाद पकड़े गए अजमल कसाब के खिलाफ सरकारी वकील रहे उज्ज्वल निकम 1993 के मुंबई बम धमाकों, गुलशन कुमार हत्याकांड और प्रमोद महाजन की हत्या जैसे हाइ-प्रोफाइल मामलों से जुड़े रहे हैं। कसाब के केस में बिरयानी पर दिए अपने एक विवादास्पद बयान से वे राष्ट्रीय सुर्खियों में आए थे। उन्होंने 2024 में भाजपा के टिकट पर उत्तर-मध्य मुंबई से लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गए। लॉरेंस बिश्नोई के उदय और मुंबई के अंडरवर्ल्ड पर आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने उनसे बातचीत की। संपादित अंश:
मायानगरी की सियासत में जरायम के नए चेहरे
मायापुरी में अपराध भी फिल्मी अंदाज में होते हैं, बस एक हत्या, और बी दशकों की कई जुर्म कथाओं पर चर्चा का बाजार गरम