ब्रिटिश साम्राज्य था तो कितने सारे राजा-महाराजा थे। हमें वह भी नहीं चाहिए था। हम न ब्रिटेन के अधीन रहना चाहते थे, न राजा-रजवाड़ों के। हमें ऐसा डाक्यूमेंट (दस्तावेज) चाहिए था जिसमें यह साफ तरीके से लिखा हो। यह एक नई बात थी। दूसरी बात यह थी कि हम एक विजन डाक्यूमेंट (दृष्टि-पत्र) चाहते थे। हमारी तरह-तरह की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समस्याएं थीं। उन सब समस्याओं की वजह से हम लोग हर मायने में पिछड़े हुए थे। इसलिए हमें एक ऐसा विजन डाक्यूमेंट चाहिए था जो हम सबको बांध सके, मगर हमें एकरूप न बनाए, यूनिफॉर्मिटी न हो, बल्कि ऐसा सुंदर ब्लूप्रिंट तैयार करे कि हम किस दिशा में अपने समाज को ले जाना चाहते हैं। हम अपनी सभी समस्याओं से छुटकारा पाना चाहते थे और अपने को नया विजन देना चाहते थे। तो, सबसे पहले मैं यही कहूंगा कि संविधान बेहद जरूरी था, न सिर्फ व्यक्ति के तौर पर, बल्कि सामुदायिक तौर पर, समूचे राजनैतिक समुदाय के तौर पर स्वतंत्र होने के लिए। इसके लिए स्वाधीनता, स्वतंत्रता और स्वराज बेहद महत्वपूर्ण था। वह स्वराज हम कैसा बनाएंगे, उसकी अवधारणा उस वक्त जो भी थी, उसे हमने प्रकट किया इस दस्तावेज में।
पूरे दस्तावेज में तो यह सब है ही, लेकिन उसकी प्रस्तावना अपने आप में एक बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसके बारे में आजकल फिर चर्चा हो रही है कि स्कूलों के पाठ्य-पुस्तकों से उसे हटा दिया गया है। उसमें जो सारे बुनियादी, मौलिक सिद्धांत हैं, वह शुरू में ही लिख दिए गए हैं कि यही हमारी गाइडलाइन (दिशा-निर्देश) है। तो, संविधान का एक राजनैतिक, सामाजिक संदर्भ था और है।
Denne historien er fra September 02, 2024-utgaven av Outlook Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra September 02, 2024-utgaven av Outlook Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शहरनामा - मधेपुरा
बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित, अपनी ऐतिहासिक धरोहर, सांस्कृतिक वैभव और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध मधेपुरा कोसी नदी के किनारे बसा है, जिसे 'बिहार का शोक' कहा जाता है।
डाल्टनगंज '84
जब कोई ऐतिहासिक घटना समय के साथ महज राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा बनकर रह जाए, तब उसे एक अस्थापित लोकेशन से याद करना उस पर रचे गए विपुल साहित्य में एक अहम योगदान की गुंजाइश बनाता है।
गांधी के आईने में आज
फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई के दो पात्र मुन्ना और गांधी का प्रेत चित्रपट से कृष्ण कुमार की नई पुस्तक थैंक यू, गांधी से अकादमिक विमर्श में जगह बना रहे हैं। आजाद भारत के शिक्षा विमर्श में शिक्षा शास्त्री कृष्ण कुमार की खास जगह है।
'मुझे ऐसा सिनेमा पसंद है जो सोचने पर मजबूर कर दे'
मूर्धन्य कलाकार मोहन अगाशे की शख्सियत के कई पहलू हैं। एक अभिनेता के बतौर उन्होंने समानांतर सिनेमा के कई प्रतिष्ठित निर्देशकों के साथ काम किया। घासीराम कोतवाल (1972) नाटक में अपनी भूमिका के लिए वे खास तौर से जाने जाते हैं। वे मनोचिकित्सक भी हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर उन्होंने कई फिल्में बनाई हैं। वे भारतीय फिल्म और टेलिविजन संस्थान (एफटीआइआइ) के निदेशक भी रह चुके हैं। उनके जीवन और काम के बारे में हाल ही में अरविंद दास ने उनसे बातचीत की। संपादित अंशः
एक शांत, समभाव, संकल्पबद्ध कारोबारी
कारोबारी दायरे के भीतर उन्हें विनम्र और संकोची व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, जो धनबल का प्रदर्शन करने में दिलचस्पी नहीं रखता और पशु प्रेमी था
विरासत बन गई कोलकाता की ट्राम
दुनिया की सबसे पुरानी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में एक कोलकाता की ट्राम अब केवल सैलानियों के लिए चला करेगी
पाकिस्तानी गर्दिश
कभी क्रिकेट की बड़ी ताकत के चर्चित टीम की दुर्दशा से वहां खेल के वजूद पर ही संकट
नशे का नया ठिकाना
कीटनाशक के नाम पर नशीली दवा बनाने वाले कारखाने का भंडाफोड़
'करता कोई और है, नाम किसी और का लगता है'
मुंबई पर 2011 में हुए हमले के बाद पकड़े गए अजमल कसाब के खिलाफ सरकारी वकील रहे उज्ज्वल निकम 1993 के मुंबई बम धमाकों, गुलशन कुमार हत्याकांड और प्रमोद महाजन की हत्या जैसे हाइ-प्रोफाइल मामलों से जुड़े रहे हैं। कसाब के केस में बिरयानी पर दिए अपने एक विवादास्पद बयान से वे राष्ट्रीय सुर्खियों में आए थे। उन्होंने 2024 में भाजपा के टिकट पर उत्तर-मध्य मुंबई से लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गए। लॉरेंस बिश्नोई के उदय और मुंबई के अंडरवर्ल्ड पर आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने उनसे बातचीत की। संपादित अंश:
मायानगरी की सियासत में जरायम के नए चेहरे
मायापुरी में अपराध भी फिल्मी अंदाज में होते हैं, बस एक हत्या, और बी दशकों की कई जुर्म कथाओं पर चर्चा का बाजार गरम