प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1950 में बंबई (मुंबई) में एक अभिनंदन समारोह में फिल्मकारों से भावुक अपील की थी कि, “यहां बैठे आप तमाम लोग फिल्मों से संबंधित हैं, आप लोगों से मेरी एक मिन्नत है। शायद आप जानते होंगे कि मेरी मातृभाषा भोजपुरी है। साहित्यिक तौर पर समृद्ध तो नहीं, लेकिन सांस्कृतिक विविधता से भरी यह बहुत ही प्यारी और संस्कारी बोली है। आप फिल्मकारों की पहल अगर इस ओर भी हो, तो सबसे ज्यादा खुशी मुझे होगी।” उनके आग्रह को साकार करने में इंडस्ट्री को 12 साल लग गए। पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मइया तोहे पियरी चढइबो का मुहुर्त पटना के शहीद स्मारक में 1961 में हुआ और नवंबर 1962 में फिल्म रिलीज हुई। हालांकि यह बिहार में फिल्म की शुरुआत नहीं थी। कहा जाता है बिहार के अपने सिनेमा का सपना देव के महाराजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर ने 1931 से ही देखना शुरू कर दिया था। राजा देव ने पहले छठ पर एक डाक्यूमेंट्री बनाई और 1932 में सूरदास की प्रेमकथा पर विल्वमंगल का निर्माण किया। लेकिन बिहार में वह सिनेमा उद्योग आकार नहीं ले सका, जिसकी कल्पना कभी राजा देव और राजेंद्र बाबू ने की होगी।
Denne historien er fra September 16, 2024-utgaven av Outlook Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra September 16, 2024-utgaven av Outlook Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
'वाह उस्ताद' बोलिए!
पहला ग्रैमी पुरस्कार उन्हें विश्व प्रसिद्ध संगीतकार मिकी हार्ट के साथ काम करके संगीत अलबम के लिए मिला था। उसके बाद उन्होंने कुल चार ग्रैमी जीते
सिने प्रेमियों का महाकुंभ
विविध संस्कृतियों पर आधारित फिल्मों की शैली और फिल्म निर्माण का सबसे बड़ा उत्सव
विश्व चैंपियन गुकेश
18वें साल में काले-सफेद चौखानों का बादशाह बन जाने वाला युवा
सिनेमा, समाज और राजनीति का बाइस्कोप
भारतीय और विश्व सिनेमा पर विद्यार्थी चटर्जी के किए लेखन का तीन खंडों में छपना गंभीर सिने प्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय सौगात
रफी-किशोर का सुरीला दोस्ताना
एक की आवाज में मिठास भरी गहराई थी, तो दूसरे की आवाज में खिलंदड़ापन, पर दोनों की तुलना बेमानी
हरफनमौला गायक, नेकदिल इंसान
मोहम्मद रफी का गायन और जीवन समर्पण, प्यार और अनुशासन की एक अभूतपूर्व कहानी
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे
रफी जैसा बनने में केवल हुनर काम नहीं आता, मेहनत, समर्पण और शख्सियत भी
'इंसानी भावनाओं को पर्दे पर उतारने में बेजोड़ थे राज साहब'
लव स्टोरी (1981), बेताब (1983), अर्जुन (1985), डकैत (1987), अंजाम (1994), और अर्जुन पंडित (1999) जैसी हिट फिल्मों के निर्देशन के लिए चर्चित राहुल रवैल दो बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हो चुके हैं।
आधी हकीकत, आधा फसाना
राज कपूर की निजी और सार्वजनिक अभिव्यक्ति का एक होना और नेहरूवादी दौर की सिनेमाई छवियां
संभल की चीखती चुप्पियां
संभल में मस्जिद के नीचे मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका के बाद हुई सांप्रदायिकता में एक और कड़ी