![प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त](https://cdn.magzter.com/1338812051/1662099493/articles/N2mW0BY_91662466543091/1662467445328.jpg)
दिसंबर 2015 की इलाहाबाद की सर्द दोपहर. कई दिनों बाद कुहरे पर विजय प्राप्त करते हुए सूरज निकला था. 17 साला सिया उसी धूप में बैठने का आनंद लेने के लिए अपने घर की छत पर आई थी, उस के हाथ में उस का फोन था और मां को भरमाने के लिए हाथ में मोटी सी किताब थी.
पड़ोसी रमाकांत ने ऊपर के कमरों को छात्रों को किराए पर दिया हुआ था. उन की छत पर एक आकर्षक युवक सोम, जो लगभग 6 फुट लंबा होगा, के बाल घुंघराले थे, बैठा हुआ पढ़ने में तल्लीन था.
17 साला अल्हड़ सी मासूम दिखने वाली सिया ने अपने बाल खोल रखे थे. उस का रंग तो गंदुमी सा था, लेकिन चेहरा कमनीय, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें... वह सादगी से लाल रंग का सलवारसूट पहने हुए थी, जो उस पर बहुत फब रहा था. सोम उस को कुछ पल तक अपलक निहारता रहा था, मानो कब से वह इस लड़की का इंतजार कर रहा था. दोनों एकदूसरे को कनखियों से देखते जा रहे थे. नजरें मिलते ही वह दूसरी ओर मुंह फेर लेते, लेकिन सिया पर तो जैसे उस अनजान युवक का जादू चल गया हो. बस, दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं. कभी गुलाब, तो कभी चौकलेट, तो कभी गाजर का हलवा... प्यार की आग में दोनों झुलस रहे थे. देररात तक चैटिंग चलती, लेकिन किसी को कानोंकान अंदाजा नहीं था कि उस का और सोम का रिश्ता दोस्ती और पड़ोसी की सारी सीमाएं लांघ चुका है. शोख, चंचल सिया उसे फिल्मी नायिका सरीखी लगती और वह हर पल उस की यादों में खोया रहता.
एक दिन जब सिया के मम्मीपापा कहीं शादी में गए हुए थे, सोम आगे की कोचिंग के लिए दिल्ली जाने के लिए अपना सामान पैक कर चुका था. आसन्न बिछोह की कल्पना मात्र से वह आंसू बहा रही थी, तभी सोम आ गया. उस के चेहरे पर भी गहरी उदासी छाई हुई थी. वह सिया से बिलकुल सट कर बैठ गया, लेकिन प्रेमिका के मंत्रण सान्निध्य की खुशबू से वह स्वयं पर से अपना खोता जा रहा था और फिर तो कब उस ने सिया को अपने आलिंगन में जकड़ लिया था, वह स्वयं नहीं जान सका था. सिया की आंखों में भी शायद इस पल का बहुत दिनों से इंतजार था. फिर तो कभी अधरों पर चुंबन की बौछार थी, तो कभी मस्तक पर, कभी गालों पर आखिरकार, दोनों एकदूसरे में डूब कर सारी वर्जनाओं को तोड़ चुके थे.
सोम के चेहरे पर पश्चात्ताप की रेखाएं स्पष्ट थीं. वह अपराधभाव से ग्रस्त हो उठा था. यह उस ने क्या कर डाला.
Denne historien er fra August II 2022-utgaven av Sarita.
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मौन का मूलमंत्र जिंदगी को बनाए आसान
हम बचपन में बोलना तो सीख लेते हैं मगर क्या बोलना है और कितना बोलना है, यह सीखने के लिए पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है. मौन रहना आज के दौर में ध्यान केंद्रित करने की तरह ही है.
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अमेरिका में भी पनप रहा ब्राह्मण व बनिया गठजोड़
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही अमेरिका में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है जिसे ले कर हर कोई आशंकित है कि अब लोकतंत्र को हाशिए पर रख धार्मिक एजेंडे पर अमल होगा.
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युवाओं के सपनों के घर पर डाका
नौकरीपेशा होम लोन ले कर अपने सपनों का आशियाना खरीद लेते हैं. लेकिन यहां समस्या तब आती है जब किसी यूइत में वे लोन नहीं चुका पाते. ऐसे में कई बार उन्हें अपने घर से हाथ धोना पड़ता है.
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बूफे पार्टी में मेहमान भोजन और अच्छे समय का आनंद लेने के साथसाथ सोशल गैदरिंग के चलन को भी जीवित रखते हैं. यह अवसर न केवल खानपान के लिए होता है बल्कि यह लोगों के बीच बातचीत, हंसीमजाक और आपसी विचारों के आदानप्रदान का एक साधन भी है.
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एक तरह के हादसे पर कानून दो तरह से कैसे काम कर सकता है? क्या यह न्याय और संविधान दोनों का अपमान नहीं ?
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ऊंचे ओहदे वालों में अकड़ क्यों
कुछ लोगों में अपने रुतबे को ले कर अहंकार होता है. उन्हें लगता है कि उन का ओहदा, उन का पद बैस्ट है. वे सुपीरियर हैं. यह सोच अहंकार और ईगो लाती है जो इंसान के व्यवहार में अड़चन डालती है.
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बंटोगे तो कटोगे वाला नारा प्रधान राष्ट्र
देश नारा प्रधान है. काम भले कुछ न हो रहा हो पर पार्टियां और सरकारों द्वारा उछाले नारों की खुमारी जनता पर खूब छाई रहती है.