भारत में पर्यटन के लिए इतनी सारी जगहें हैं कि अर्थव्यवस्था काफीकुछ पर्यटन पर ही निर्भर कर रही है. यहां न सिर्फ भारत के ही लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने के लिए जाते हैं, बल्कि विदेशों के लाखों लोग भी यहां घूमने के लिए आते हैं.
भारत की जीडीपी में पर्यटन क्षेत्र का योगदान 9.2 फीसदी बढ़ कर 240 अरब डौलर तक पहुंच गया है. पर्यटन भारत में विदेशी मुद्रा लाने वाला तीसरा सब से बड़ा क्षेत्र है. यह क्षेत्र 4.2 करोड़ लोगों को नौकरियां देता है, जो कुल रोजगार का 8.1 फीसदी है. यही नहीं, पर्यटन के क्षेत्र में तमाम तरह के रोजगार भी हैं. यह इन्फ्रास्ट्रक्चर, सांस्कृतिक पर्यटन, धार्मिक व हैरिटेज पर्यटन, हिमालयन राज्यों में पर्यटन, स्थायी पर्यटन, पर्यटन स्थलों के प्रचारप्रसार में तकनीक की भूमिका, होम स्टे का महत्त्व, पर्यटन के साथ आयुर्वेद व मैडिकल को जोड़ना, वन्यप्राणी पर्यटन शामिल हैं. भारत में हिमालयन रेंज में आने वाले राज्यों में पर्यटन विकास का सब से बड़ा जरिया है.
आंकड़े बताते हैं कि 2023 तक भारत में पर्यटन उद्योग की सालाना कमाई 60 अरब डौलर के करीब होनी चाहिए. पर्यटन क्षेत्र का अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. विकास और रोजगार बढ़ाने में भी इस की बड़ी भूमिका होती है. भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में पर्यटन क्षेत्र महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है. यह ऐसा क्षेत्र है जो रोजगार के काफी अवसरों का सृजन कर सकता है. देश में पर्यटकों की संख्या बढ़ने से रोजगार बढ़ते हैं. यह क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर भी पैदा करता है. 2018 में पर्यटन से भारत को 28.6 अरब डौलर की कमाई हुई थी जो 2022 तक 50 अरब डौलर पर पहुंच गई.
Denne historien er fra April Second 2023-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra April Second 2023-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.