इस श्रृंखला में 1947 के बाद की सरकारों की नीतियों और उन के दैनिक कामकाज, राजनीति या विदेशी मामलों और भ्रष्टाचार की समीक्षा नहीं की जा रही है. इस श्रृंखला का उद्देश्य यह परखना है कि 1947 के बाद केंद्र सरकार ने जो कानून बनाए या संविधान संशोधन किए उन से समाज सुधार हुआ तो वह क्या है. केवल सरकार चलाने के उद्देश्य से बनाए गए किसी कानून की समीक्षा नहीं की जा रही है, इस में वे कानून हैं जिन का जनता और समाज पर व्यापक असर पड़ा.
लोकतंत्र का असली मकसद राजा को हटा कर जनप्रतिनिधियों को लाना ही नहीं होता, राजा की जगह ऐसे हाथों में सारा देश देना होता है जो जनता की समस्याएं समझें और सुलझाएं. जरूरी नहीं कि हर समस्या पर जनता कोई लंबा धरना प्रदर्शन करे, अखबारों और मीडिया में शोर मचाए, जुलूस निकाले, अनशनों पर बैठे. शासक अगर जनता के वोटों से चुन कर आए हैं तो उन का कर्तव्य है कि वे जनता की सामाजिक, पारिवारिक कठिनाइयों को समझें.
श्रीचंदेश्वर का एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ 'राजनीतिरत्नाकर' चाणक्य के अर्थशास्त्र की तरह प्रसिद्ध तो नहीं है पर इस में भी पौराणिक युग के राजाओं के कामकाज पर प्रकाश डाला गया है. श्री चंदेश्वर 14वीं सदी के कामेश्वर राजवंश के एक अमात्य थे, ऐसा समझा जाता है उस समय दिल्ली में गयासुद्दीन तुगलक का राज था. चंदेश्वर राजा तुगलक के हमले के बाद कामेश्वर राज्य छोड़ कर नेपाल भाग गया और वहां भी किसी इलाके में अपना राज्य स्थापित कर लिया. इस ग्रंथ में बिहार और बंगाल के राजाओं के कामकाज का वर्णन है.
ग्रंथ और उस के रचनाकार की बात न करते हुए उस काल के हिंदू राजाओं की राजनीति कैसी थी या पंडितों के अनुसार क्या होनी चाहिए, इस की झलक इस के कुछ अंशों में मिलती है. राजीव गांधी के 1989 के चुनाव में हारने के बाद जो प्रधानमंत्री बने चाहे वे कुछ भी कहते रहे हों उनके कामों पर हिंदू कट्टर राजाओं की सोच का पूरा प्रभाव था.
इस ग्रंथ में मनु के संदर्भ में राजा के कर्तव्यों में सर्वप्रथम यह उल्लिखित है :
"ब्राह्मणान् पर्युपासीत प्रातरुत्थाय पार्थिवः
त्रैविद्यवृद्वान् विदुष्स्तिष्ठेते पाश्च शासने."
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