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मनोवांछित फलप्रद एकादशी का माहात्म्य व कथा
सच्चे हृदय से की हुई प्रार्थना भगवान अंतर्यामी जल्दी स्वीकार कर लेते हैं, सुन लेते हैं
सुख-दुःख का संबंध वस्तुएँ मिलने - न मिलने से नहीं
जो सत्संगियों की सेवा करता है उसका अंतरात्मा संतुष्ट होता है
उच्च शिक्षा: भ्रम व हकीकत
वासना निवृत्त करनेवाला सुख तो केवल आत्मसुख है, आत्म-ध्यान है
सत्य का सूक्ष्म विश्लेषण
जितना तुम सत्यनिष्ठ होओगे उतनी तुम्हारी योग्यताएँ निखरेंगी
...तब अंतःकरण प्रशांत होगा और ध्यान भी होगा
राग-द्वेष मनुष्य की शक्ति का ह्रास करता है
गुरु की पूजा का महत्त्व
(गतांक से आगे) परम सद्भागी हैं ऐसे मनुष्य !
गुरुनिष्ठा के आगे झुक गया हाथी
रसिकमुरारि नाम के एक महात्मा हो गये। वे बड़े ही संतसेवी और गुरुभक्त थे। अपने गुरुदेव के प्रति रसिकजी की कैसी अटूट निष्ठा व भक्तिभाव था, इससे जुड़ा उनके जीवन का एक मधुर प्रसंग उल्लेखनीय है।
अलबेले बेला की निराली गुरुनिष्ठा
गुरु गोविंदसिंहजी के एक शिष्य बेला ने उनसे निवेदन किया : \"गुरुजी ! मुझे कुछ सवा दीजिये।\"
मुझे मेरा ईश्वर मिल गया
एक बार चैतन्य महाप्रभु ने अपने रघुनाथ नाम के भक्त से कहा : \"तू चिंता मत कर, मेरी शरण में आ गया है तो मेरी कृपा से जरूर ईश्वर को उपलब्ध होगा।”
पद्मिनी एकादशी का माहात्म्य, विधि व कथा
पद्मिनी (कमला) एकादशी : २९ जुलाई
गुरु के प्रति प्रेम व समर्पण के आदर्श : पूज्य बापूजी
ईश्वरप्राप्ति की ऐसी लगन, परमात्मा के प्रति ऐसा प्रेम और ऐसी तीव्र तड़प कि उसके लिए विभिन्न प्रकार की साधनाएँ कीं, तपस्या की, संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन शुरू किया लेकिन जब सद्गुरु मिले तो कुछ ही दिनों में उनके अनुभव को अपना अनुभव बनाने में सफल हो गये... जानते हैं कौन ?
आओ करें कथा-अमृत का पान
जो शिष्य के अज्ञान-अंधकार को, पाप-ताप को हर लें और उसे ज्ञान-प्रकाश से सुसज्ज कर पुण्य-पाप से परे परम पद में विश्रांति दिला दें ऐसे अलख पुरुष की आरसी स्वरूप महापुरुषों को 'सद्गुरु' कहते हैं।
गुरुपूनम पर साधकों के लिए नया पाठ
भगवान का ज्ञान पाने के लिए भगवान का स्वरूप, भगवान का पता वेद, पुराण और अन्य शास्त्रों में खोजते-खोजते तुम थक जाओगे।
कलियुग में सहज, सुरक्षित साधन : गुरुआज्ञा-पालन
पहले के जमाने में शिष्य इतना पढ़ते नहीं थे जितनी गुरुसेवा (गुरुआज्ञा पालन ) करते थे। वे सेवा का महत्त्व जानते थे। गुरु की सेवा और अनुकम्पा से ही सशिष्यों को सभी प्रकार के ज्ञानों की उपलब्धि हो जाती थी। गुरुआज्ञा का, गुरु के सिद्धांतों का पालन ही गुरुदेव की सच्ची सेवा है। संदीपक, तोटकाचार्य, पूरणपोड़ा को देखो, ये इतने पढ़े-लिखे नहीं थे पर गुरुसेवा द्वारा गुरुकृपा प्राप्त कर महान हो गये।
काल टाल दिया और बना दिया महापुरुष !
प्रयाग में सन् १२९९ में एक लड़के का जन्म हुआ, जिसका नाम रामदत्त रखा गया। जब वह पढ़ने योग्य हुआ तो माता-पिता ने उसे काशी भेजा।
कामिका एकादशी का माहात्म्य एवं विधि
कामिका एकादशी : १३ जुलाई
भारतीय संस्कृति को एक सूत्र में पिरोनेवाले शंकर
नन्ही उम्र में निकले सद्गुरु की खोज में
शाश्वत सुख दिलाने व निजस्वरूप में जगाने की व्यवस्था है यह पर्व
गुरुपूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा और आषाढ़ी पूर्णिमा भी कहते हैं । यह व्रत पूर्णिमा भी है। कुछ व्रत होते हैं, कुछ उत्सव होते हैं परंतु गुरुपूर्णिमा व्रत और उत्सव - दोनों का दिवस है।
विशेष लाभदायी स्मृतिशक्तिवर्धक प्रयोग
गर्मी के दिनों में पके पेठे की सब्जी खाने से स्मरणशक्ति में कमी नहीं आती है।
रोगप्रतिकारक शक्ति का खजाना : स्वास्थ्यप्रद तरबूज के छिलके
यश, सुख, सफलता, लोक-परलोक की उपलब्धियाँ - ये सब आत्मबल से होती हैं ।
बड़े-बड़े अपराधों से निवृत्त कर पावन करनेवाला व्रत
एकादशी का व्रत भगवान के नजदीक ले जानेवाला है। युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा : \"प्रभु ! आषाढ़ (अमावस्यांत मास अनुसार ज्येष्ठ) मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम क्या है? उसके विषय में जानना चाहता हूँ\"
आप भी ऐसे नर - रत्न बन सकते हो
बाल गंगाधर तिलक ५वीं कक्षा में पढ़ते थे तब की बात है। एक बार कक्षा में किसी बच्चे ने मूँगफली खायी और छिलके वहीं फेंक दिये। अंग्रेज शासन था, हिन्दुस्तानियों को डाँट-फटकार के, दबा के रखते थे। मास्टर आया और रुआब मारते हुए बोला : \"किसने मूँगफली खायी?\"
तुम संसार में किसलिए आये हो ?
एक होता है कर्म का बल । जैसे मैं किसी वस्तु को ऊपर फेंकूँ तो मेरे फेंकने का जोर जितना होगा उतना ऊपर वह जायेगी फिर जोर का प्रभाव खत्म होते ही नीचे गिरेगी । गेंद को, पत्थर को ऊपर फेंकने में आपमें जितना कर्म का बल है उतना वे ऊपर जायेंगे फिर बल पूरा हुआ तो गिरेंगे । ऐसे ही कर्म के बल से जो चीज मिलती है वह कर्म का बल निर्बल होने पर छूट जाती है।
गुरुभाई को सताना बना प्रतिबंधक प्रारब्ध
अष्टावक्र मुनि ने राजा जनक को उपदेश दिया और उनको आत्मसाक्षात्कार हुआ यह तो सुना-पढ़ा होगा लेकिन राजा जनक और अष्टावक्र मुनि के पूर्वजन्म का वृत्तांत भी बड़ा रोचक और बोधप्रद है।
वास्तविक संजीवनी
ईरान के बादशाह नशीखान ने संजीवनी बूटी के बारे में सुना। उसने अपने प्रिय हकीम बरजुए से पूछा : \"क्या तुमने भी कभी संजीवनी बूटी का नाम सुना है ?\"
बाहरी शरीर के साथ आंतरिक शरीर की चिकित्सा करो
जिसने अपने मन को ध्यान में लगाया वह अपने-आपका मित्र है।
ब्रह्मज्ञान क्यों जरूरी है?
ब्रह्मविद्या के आगे जगत की सब विद्याएँ छोटी हो जाती हैं।
आया, बैठा और पा के मुक्त हो गया
एक दिन महात्मा बुद्ध अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठे थे, उनका शिष्य आनंद अंदर था। एक व्यक्ति आया, बोला : ‘\"भंते ! मैं आपके पास वह बात सुनने को आया हूँ जो कही नहीं जाती है, वह बात समझने को आया हूँ जो समझायी नहीं जाती, मैं उसको जानने को आया हूँ जिसको जाननेवाला स्वयं रहता नहीं।\"
वे जीते-जी मृतक समान हैं
सावधान हो जाओ... बोध को पालो !
आपकी वास्तविक शोभा किसमें है?
जवानी का नाश करके फिर ईश्वर पाना मुश्किल है