वहाँ एक राजकीय नियम था कि बड़ा पुत्र ही गद्दी का अधिकारी होता था। अगर राजा के दो पुत्र हुए, तब बड़ा बेटा राजकुमार घोषित किया था और दूसरा बेटा बिना हिचक शिवार्पण कर दिया जाता था। इसी कारण राजा का भरसक प्रयत्न होता था कि एक ही सन्तान हो। राजा-रानी एक से दो सन्तान नहीं चाहते थे। प्रजा भी वही नियम अपनाती थी। राज्यभर में आबादी नियंत्रित थी और प्रजा सुखी थी।
एक समय राजा थे रुद्रमणि। वे भारशिवों के चौथे राजा थे। राजा रुद्रमणि बहुत ही प्रतापी और धार्मिक थे। शास्त्र और शस्त्र दोनों में निपुण थे। उन्हें गृहस्थी से ज्यादा लगाव नहीं था। जब उनकी उम्र ढलने लगी, तब समय देखकर मंत्री और प्रजाजन एक साथ मिलकर उन पर दवाब डालने लगे कि महाराज राज्य को एक उत्तराधिकारी दें। महाराज दबाव में आ गए। समय पर रानी के जुड़वाँ बच्चे हुए। जिस बच्चे का जन्म पहले हुआ, वह ज्येष्ठ पुत्र माना गया। जब बच्चे धीरे-धीरे बड़े हुए, तब राजा को चिन्ता सताने लगी कि अब समय आ गया है कि बड़े बेटे को राजकुमार घोषित करना होगा और छोटे को देवस्थान में देना होगा। दिनब-दिन चिन्ता गम्भीर होने लगी।
महाराज प्रायः उदास रहने लगे। एक दिन महारानी ने चिन्ता का कारण पूछा। उत्तर में महाराज ने कहा, महारानी! राज्य के नियम के अनुसार पुत्र को राजकुमार घोषित करना होगा और छोटे को किसी देवस्थल को सौंपना होगा। बालक की शिक्षा-दीक्षा, देखरेख सब कुछ वहीं होगी। कहकर महाराज ने एक लम्बी सांस ली और महारानी की ओर देखा।
रानी गम्भीर होकर बोली, महाराज! दोनों पुत्र हमारे हैं। ज्येष्ठ पुत्र राज्य का अधिकारी बने और दूसरा बेटा परिव्राजक बनकर किसी देवालय ज्येष्ठ में अपना जीवन काटे। हे महाराज! मुझे तो यह नियम बड़ा ही क्रूर जान पड़ता है। ऐसा नियम नहीं होना चाहिए। आप से निवेदन है कि आप इस क्रूर नियम को समाप्त कर दें। कहकर महारानी ने महाराज की ओर देखा।
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
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सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
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