तुलसीदासजी की कृतियों में भी कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है, जिसकी सहायता से हम किसी भी हद तक निश्चय के साथ उनकी जन्मतिथि निर्धारित कर पाते। राम मुक्तावली में आई एक पंक्ति के आधार पर हिन्दी के विद्वान् जगन्मोहन वर्मा का कहना था कि तुलसीदासजी 120 वर्ष तक जीवित रहे और इसलिए उनकी जन्मतिथि विक्रम संवत 1560 होनी चाहिए, परन्तु तुलसीदास जी के जीवन चरित एवं उनकी रचनाओं पर दशकों तक शोधकार्य करने वाले डॉ. माता प्रसाद गुप्त का कहना है कि राममुक्तावली की शैली, विचारधारा तथा छन्द योजना आदि के आधार पर इसे गोस्वामी की जी कृति नहीं माना जा सकता। फिर भी जिस पंक्ति के आधार पर जगन्मोहन वर्मा ने यह अनुमान निकाला था, वह इस प्रकार है:
पवनतनय मो सन कहियो ।
पांच बीस अरु बीस।।
‘पाँच बीस' अर्थात् पाँच बार बीस अर्थात् 100 'अरु बीस' अर्थात् अतिरिक्त 20 इस तरह 120 वर्ष उन्होंने अनुमान लगाया, परन्तु विद्वान् इस व्याख्या से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि यह संख्या 45 है। डॉ. माताप्रसाद गुप्त भी इसे 45 की संख्या मानते हैं। इसके अतिरिक्त उनका कहना है कि “45 संख्या ही अधिक समीचीन है, क्योंकि अन्यथा यदि 120 की अवस्था का घटना का उल्लेख कवि (तुलसीदासजी) इस पंक्ति में कर रहा है, तो अवश्य ही यह पंक्ति 120 की अवस्था के बाद लिखी गई होगी।”
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।