पुराण प्रतिपादत अवतारों में विकासवाद का क्रम व्याख्यात होता है। धर्मग्रन्थों से ज्ञात होता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में सर्वत्र जल ही जल था, अतः जगत् के विकास में मत्स्य ही प्रथम जीव था, , जिसने प्राणियों की रचना का प्रतिनिधित्व किया। जल के बाद पर्वतों का उदय हुआ, जिसका प्रतीक कूर्म अवतार, समुद्र मन्थन उस विकास का सूचक है। जल से भूमि के उदय में सृष्टि के विकास के तृतीय सोपान का मर्म छिपा है, जो वराहावतार ने सम्पन्न किया। नृसिंहावतार में मानव और पशु दोनों के विकास की कथा छिपी है।
विष्णु का अवतारवाद भागवत अथवा वैष्णव सम्प्रदाय की विशिष्ट देन है। विष्णु के अवतारों के तीन प्रभेद उल्लिखित हैं : पूर्णावतार, आवेशावतार एवं अंशावतार। विष्णु के अवतारों की संख्या में बड़ा मतभेद है। वराह पुराण में सर्वमान्य रूप से दस अवतारों का उल्लेख है। अग्निपुराण में भी यही साम्यता है : (1) मत्स्य, (2) कूर्म, (3) वराह, (4) नृसिंह, (5) वामन, (6) परशुराम, (7) राम, (8) कृष्ण, (9) बलराम एवं (10) कल्कि
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हस्तरेखाओं से कुछ विशेष उपलब्धिकारक सूत्र
बृहदारण्यकोपनिषद् (1–45) में कहते हैं— 'आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः।' अर्थात् अरे ! यह आत्मा ही देखने और जानने योग्य है, सुनने योग्य है, मनन करने योग्य है तथा ध्यान करने योग्य है। यानि आत्मा के सम्बन्ध में पहले सुनना होगा, उसके बाद मनन अर्थात् चिन्तन करना होगा। उसके बाद लगातार ध्यान करना होगा।
हँसी के बिना जीवन नहीं!
कुछ मत सोचिएगा, बस हँसिएगा। तब तक हँसते रहिएगा, जब तक आपके शरीर का प्रत्येक अंग हँसने नहीं लगे। हँसता हुआ ध्यान कीजिए, खिलखिलाता हुआ ध्यान।
व्यावसायिक बिल्डिंग में अग्निकोण का पानी स्रोत बन्द कर देगा कारोबार!
किसी भी कॉमर्शियल भवन अथवा बिल्डिंग के अग्निकोण में स्थित गड्ढ़ा या फिर पानी होने से व्यापार पूरी तरह से ठण्डा हो जाता है, क्योंकि पानी का काम ही होता है, गर्मी अथवा ताप को शान्त करना, तो ऐसे में यह बहुत ही जरूरी हो जाता है, कि जब भी आप किसी फैक्ट्री, मॉल, कारखाना, इण्डस्ट्री, होटल, स्कूल, कॉलेज, शोरूम, सरकारी भवनों का निर्माण प्रारम्भ करते हैं, तो इनके अग्निकोण में किसी भी प्रकार का गड्ढ़ा अथवा कोई पानी का स्रोत नहीं होना चाहिए अन्यथा निर्माण के दौरान से लेकर निर्माण होने तक कई प्रकार की रुकावटें आती हैं।
भगवान् विष्णु का अन्तिम अवतार कल्कि
वर्तमान में श्रावण शुक्ल षष्ठी का ही कल्कि जयन्ती के रूप में प्रचलन है। इस दिन भगवान् कल्कि के मन्दिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है और भक्तगण उनकी स्तुति, मन्त्रजप, सहस्रनाम मन्त्र पाठ इत्यादि के द्वारा उन्हें प्रसन्न करते हैं।
भारतीय खगोलशास्त्री वराहमिहिर
वराहमिहिर ईसा की पाँचवी-छठी शताब्दी में हुए थे। वे खगोलशास्त्री के साथ गणितज्ञ भी थे। वे मगध सम्राट् चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। मान्यता है कि वराहमिहिर का जन्म 505 ई. में हुआ था और उनकी मृत्यु 587 ई. में हुई थी। वे अवन्तिका (उज्जैन) के निवासी थे। वे 'पंच सिद्धान्तिका' के लेखक थे। वराहमिहिर को ज्योतिष विद्या का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त था।
भगवान् शिव और श्रावण मास
सभी 12 महीनों का नाम 12 नक्षत्रों पर आधारित हैं और जिस तरह ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियाँ होती हैं, उसी तरह एक साल में 12 महीने भी होते हैं। श्रावण मास का नाम श्रवण नक्षत्र पर आधारित है। जब भी श्रावण मास अथवा श्रवण नक्षत्र का नाम आता है, तब श्रवण कुमार की निःस्वार्थ माता-पिता की भक्ति याद आ जाती है। श्रवण नक्षत्र के स्वामी चन्द्रदेव और देवता भगवान् विष्णु हैं। जब भगवान् विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग धरती माँगी थी, उस समय श्रवण नक्षत्र था।
भारतीय संस्कृति का मूलाधार श्रीकृष्ण
भीतर की जन्माष्टमी कौन मना पाएगा? वही जिसके भीतर कृष्ण रूपी चेतना का जन्म हो। कृष्ण चेतना का जन्म किसके भीतर होगा...?
कुण्डली में बिजनेस में सफलता-संघर्ष के योग
जातक की जन्मपत्रिका में एकादश भाव, सप्तम भाव और बुध का कमजोर होना बिजनेस की सफलता में बाधक बनता है।
कर्मक्षेत्र में उन्नति दिलाने वाला जया योग
जया योग एक शुभ योग है और इस योग से यह निश्चित होता है कि जातक जीवन के सभी पहलुओं में अपने विरोधियों या प्रतिस्पर्धियों द्वारा निर्धारित किसी भी बाधा पर विजय प्राप्त करने में सक्षम रहेगा।
धार्मिक आस्था का पर्व नागपंचमी
समुद्र मंथन के बाद जो विष निकला उसे पीने को कोई तैयार नहीं था। अन्तत: भगवान् शंकर ने उसे पी लिया। भगवान् शिव जब विष पी रहे थे, तभी उनके मुख से विष की कुछ बूँदें नीचे गिरीं और सर्प के मुख में समा गयीं। इसके बाद ही सर्प जाति विषैली हो गई।