लम्पी रोग की वजह से देश के कई राज्यों का पशुधन काफी स्तर तक प्रभावित हो चुका है। राजस्थान में इसकी भीषणता और अधिक गम्भीर रूप ले चुकी है । लम्पी रोग के कारण प्रदेश में ६० हजार गायों की मौत हो चुकी है जबकि १३ लाख से अधिक संक्रमित हुई हैं। इस कारण त्यौहारों के दिनों में दूध की कमी का संकट खड़ा हो जाना चाहिए लेकिन हैरत की बात यह है कि बाजार में दूध, पनीर और मावा की उपलब्धता में कोई कमी नहीं आयी है । दूध की कमी होने पर भी पूर्ति कहाँ से हो रही है?
बाजार का अधिकांश दूध पीने योग्य नहीं
दैनिक भास्कर द्वारा कैनंस संस्था के साथ मिलकर जयपुर की दूध मंडियों, दूधियों और प्राइवेट डेयरियों से लिये ३०० नमूनों की प्रतिष्ठित जाँच एजेंसी से जाँच कराने पर दूध के २०० नमूनों में से ५ नमूने ही पीने योग्य पाये गये, बाकी ‘फूड सेफ्टी एक्ट' के मानकों के तहत खरे नहीं उतरे । फेल नमूनों में वसा, विटामिन, कैल्शियम और मिनरल्स नहीं पाये गये। दूध के नमूनों में पाम तेल, नमक और चीनी की मिलावट तथा हाई लेवल एसिडिटी पायी गयी। मावा के ५० नमूनों में से २ तथा पनीर के ५० में से ३ नमूने ही पास हुए। यहाँ की। कुछ दूध मंडियों के दूध व पनीर के २०-२० नमूनों में से एक भी सेवन योग्य नहीं मिला।
Denne historien er fra November 2022-utgaven av Rishi Prasad Hindi.
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