येदावा करना कोई मामूली बात नहीं पर इंग्लैंड में सोच यही है कि मुकाबले का, जो अंदाज इस एशेज सीरीज में नजर आ रहा है वह तो ब्रैडमेन युग में भी नजर नहीं आया। इंग्लैंड में इस एशेज के लिए माहौल 2005 की एशेज से भी ज्यादा जोश वाला है, क्योंकि ये सीरीज शायद टेस्ट क्रिकेट खेलने के तरीके में बदलाव की जरूरत पर मोहर लगा देगी। क्या है इस सोच की वजह?
बेन स्टोक्स की आक्रामक कप्तानी : दोनों टीम ने समयसमय पर चतुर, चालाक और कूटनीतिक चाल वाले कप्तान देखे पर स्टोक्स जैसा बोल्ड कोई नहीं, जब से इंग्लैंड ने आक्रामक अंदाज में खेलने को अपनाया न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और भारत के विरुद्ध अपनी पिचों पर शानदार जीत हासिल की। उसके बाद एक दिन में 500 से ज्यादा के स्कोर जैसे कमाल के साथ पाकिस्तान में 3-0 से जीते। अब मौजूदा एजबेस्टन टेस्ट को ही देख लें, टॉस जीतकर गेंदबाजी को चुना जिसका मतलब है नाथन लियोन चौथी पारी में उस पिच पर गेंदबाजी करेंगे जिसमें तब तक दरार पड़ चुकी होंगी पर स्टोक्स की फिलॉसफी है, अपने तरीके से खेलना और दूसरी टीम की कोई चिंता नहीं, जब पहले ही दिन पारी समाप्त घोषित की तो क्या किसी ने सोचा था?
गजब का माहौल : एशेज को कहीं से कोई चुनौती नहीं मिल रही, इसलिए हर नजर एशेज पर है। ध्यान हटाने के लिए कोई बड़ा फुटबॉल टूर्नामेंट/ ओलंपिक नहीं हैं और प्रीमियर लीग सीज़न, एशेज के बाद शुरू होगा। यह वह सीरीज है जो अगली पीढ़ी के क्रिकेटरों को तैयार करेगी- जैसे 2005 ने 7 साल के हैरी ब्रूक के लिए किया था।
गजब का टकराव: कोई भी क्रिकेट सीरीज एशेज की तरह जिंदगी नहीं बदल सकती, मौजूद सीरीज से पहले 6 हफ्तों में इंग्लैंड की टीम (जिसने पिछले 13 में से 11 टेस्ट जीते हैं) नए टेस्ट विश्व चैंपियन से खेल रही है। इंग्लैंड ने कहा कि उनका ध्यान तो जो रूट के हीरो बनने में है और एजबेस्टन में वही हुआ, एक सिरे पर वह जम गए और बाकी के बल्लेबाज स्ट्रोक प्ले में लग गए। ऑस्ट्रेलियाई टीम इसके लिए तैयार नहीं थी।
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