मानव शरीर एक ऐसी जटिल मशीन है जिस का प्रत्येक भाग दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है. ऐसे में महिलाओं में बांझपन का कारण उन के जीवन में आई बीमारियों, गलत जीवनशैली और आनुवंशिक रोगों के साथसाथ उम्र का फैक्टर भी हो सकता है. डायबिटीज, ऐनीमिया और मोटापा जैसी स्थितियां या लापरवाह जीवनशैली जैसे तंबाकू और शराब का सेवन किसी के भी स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और यह बांझपन का बड़ा कारण हो सकता है. इस के अतिरिक्त कुछ महिलाएं जन्मजात ऐसी पैदा हो सकती हैं जिन का शरीर प्रजनन के लिए अनुकूल नहीं होता है.
आइए, इन में से कुछ फैक्टर्स को समझते हैं :
ओव्यूलेशन विकारों का प्रभाव
ओव्यूलेशन वह घटना है जब एक परिपक्व अंडा अंडाशय से बाहर निकलता है जो शुक्राणु द्वारा निषेचित होने के लिए तैयार होता है. ओव्यूलेशन से संबंधित विकारों का मतलब है कि प्रजनन पीरियड के दौरान अंडे अनुपस्थित हैं जिस से स्वाभाविक रूप से कोई भ्रूण (ऐंब्रो) नहीं बनता है.
ऐंडोमिट्रिओसिस का प्रभाव
ऐंडोमिट्रिओसिस वह स्थिति है जिस में ऐंडोमिट्रियम जो गर्भाशय को लाइनिंग करने वाला टिशू होता है, इस के बाहर बढ़ता है. 10-15% महिलाओं में प्रजनन आयु के दौर में पाया गया है. इसलिए यह कई फर्टिलिटी पैरामीटर्स को प्रभावित करता है यानी व्यवहार्य अंडों (बाइबल एग्स) की कम संख्या (लो ओवेरियन रिजर्व), अंडे और भ्रूण की खराब क्वालिटी और साथ ही इंप्लांटेशन में बाधा डालता है.
गर्भाशय फाइब्रौयड का प्रभाव
गर्भाशय फाइब्रॉयड गैरकैंसर वाले ट्यूमर हैं जो कंसीव कर सकने की उम्र में महिलाओं के गर्भाशय में बढ़ते हैं. वे विभिन्न आकारों और गर्भाशय के विभिन्न भागों में पाए जा सकते हैं. हारमोन ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन जब ज्यादा होता है तो ये इन की वृद्धि का कारण बन सकते हैं. वे गर्भावस्था के नुकसान के जोखिम को बढ़ाते हैं और महिलाओं में बांझपन की संभावना बढ़ा देते हैं.
डायबिटीज और पीसीओएस का प्रभाव
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