11 साल की कृष्टि को करीब 15-20 दिन बाद छत पर खड़े देखा तो दिया ने पूछ ही लिया, “कृष्टि इतने दिन कहां थीं?"
कृष्टि जवाब में बोली,“ सुबह से शाम तक स्कूल, ट्यूशन, स्कूल का होम वर्क, ट्यूशन का होम वर्क, टीवी और फोन में बिजी रहने के कारण बाहर निकलने को समय ही नहीं मिलता."
जवाब सुन दिया ने नए समाज में बनते ह्यूमन रोबोट का नया रूप देखा.
यह कहानी दिल्ली की रहने वाली कृष्टि कौर की थी पर यह प्रौब्लम लगभग सभी शहरी बच्चों के लिए एकजैसी है. बच्चे अपने बिजी शैड्यूल की वजह से धीरेधीरे एक दायरे में बंधते चले जाते हैं और जवानी में अपने घर, मांबाप, भाईबहन से दूर हो अपनेआप में ही गुम हो जाते हैं.
2016 का रयान इंटरनैशनल स्कूल का मामला अभी तक जेहन में है जब 11वीं के एक छात्र ने 7 साल के प्रध्युमन का मर्डर सिर्फ ऐग्जाम और पीटीएम मीटिंग से बचने के लिए कर दिया. पढ़ाई का डर, पीटीएम में पड़ने वाली डांटफटकार का खौफ, ऐग्जाम के प्रैशर ने दिमागी रूप से उस स्टूडेंट को इतना परेशान कर दिया कि उस ने मर्डर जैसे क्राइम को अंजाम दे दिया.
2019 में आई कोविड महामारी ने पूरे विश्व में तबाही मचाई, यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 330 मिलियन से अधिक बच्चे दिमागी रूप से कोविड से प्रभावित हुए. 68 दिनों के टोटल लौकडाउन और कोविड का फैलता स्वरूप लोगों की आजादी को खत्म करता गया. स्कूल बंद थे, पब्लिक प्लेस में जाने पर प्रतिबंध था, घरों से निकलना कोविड को चुनौती देना था. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई भी औनलाइन शिक्षा पर आधारित थी.
इस बीच लोगों का रियल वर्ल्ड से जुड़ाव घटता गया और रील वर्ल्ड से रिश्ता गहरा होता गया. मोबाइल फोन ने खिलौनों की जगह ले ली और लोगों पर सोशल मीडिया का गहरा प्रभाव पड़ने लगा.
एक सर्वे के अनुसार भारत में इंटरनैट यूजर की संख्या लगभग 70 करोड़ है जिस में 5 से 14 साल के बच्चे भी शामिल हैं. भारत में लोग लगभग 5 घंटे फोन और इंटरनैट का इस्तेमाल करते हैं. व्यस्त लाइफ की वजह से लोग सोशली आइसोलेट हो गए और दिमागी रूप से बीमार भी. अकेलेपन का उन के मन पर ऐसा असर पड़ा कि •वे क्रिमिनल ऐक्टिविटी भी सीखने लगे.
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