जवानी की दहलीज पर कदम रखती दीक्षा आने वाली जिंदगी के लिए उस ने ढेर सारे सपने देखे थे.
समृद्ध फौजी अफसरों के परिवार की खूबसूरत दीक्षा एमए कर रही थी. इंग्लिश के नएपुराने लेखकों की किताबें पढ़ना दीक्षा की हौबी थी. उस की पसंदीदा किताबें जिस बुकशौप पर मिलती थीं वहां सब उसे अच्छी तरह जान गए थे. वहीं उस की मुलाकात अमर से हुई. अमर उसे देखते ही उस के पास आ जाता और किताबें चुनने में उस की मदद करता. उस के पिता सेना में सिपाही थे. वह भी सेना में जाना चाहता था पर भरती में चुना न जा सका.
लंबा सांवला मजबूत कदकाठी का अमर मुसकराता तो उस के गालों पर गहरे गड्ढे पड़ते, जिन्हें देख दीक्षा का दिल बेकाबू हो उठता. शेक्सपीयर, कीट्स और बर्नार्ड शो पढ़तेपढ़ते कब दीक्षा मुहब्बत के पाठ पढ़ने लगी उसे पता ही न चला, जब उस के घर वालों को पता चला तो घर में तूफान आ गया. मम्मीपापा जानतेबूझते मक्खी निगलने को तैयार नहीं थे. लड़की का तो दिमाग खराब हो गया था पर उन्हें इसी समाज में रहना है. लोग क्या कहेंगे कि मेजर सब्बरवाल का दामाद इंटर पास सेल्समैन है.
बेकार गया समझाना
घर में सब ने दीक्षा को समझाने की बहुत कोशिश की पर नाकाम रहे. आखिर उस के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. पर वह इश्क ही क्या जो बंदिशें बरदाश्त करे. अतः रात चुपचाप अपना सूटकेस थाम अमर के पास पहुंची गई. फिर कोर्ट में दोस्ती की मौजदूगी में शादी कर ली. अमर के घर वाले उस में शामिल हुए पर दीक्षा के परिवार वालों के लिए वह मर चुकी थी.
अमर के पिता का फौज से रिटायरमैंट हो चुका था. 3-4 साल पहले उन्हें एकाएक पक्षाघात हुआ तो घर संभालने के लिए अमर को सेल्समैन की नौकरी करनी पड़ी. उस की मां का स्वभाव बेहद कर्कश था. बेटी भी अपनी मां के सुर में सुर मिलाती. दीक्षा बिना दानदहेज के आ गई थी. इस के लिए उसे दिनभर ताने सुनने पड़ते. अमर दीक्षा का साथ देने का प्रयास करता तो उसे जोरू का गुलाम जैसी उपाधियों से विभूषित किया जाता. अमर के पिता तो कभी अपनी पत्नी के समक्ष कुछ बोल ही नहीं पाए. पत्नी के रौद्ररूप को देखते ही बेचारे सहम कर चुप हो जाते. अब उन का स्वास्थ्य ठीक हो गया था तो उन्होंने फिर अपनी पुरानी नौकरी पर जाना शुरू कर दिया.
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