'वै लेंटाइन डे' मनाएं या नहीं इस बाबत बहुत सारी आपत्तियां भगवा गैंग वाले खड़ी करते हैं. 'प्रेम' मन में लिखने वाली एक कोमल भावना होती है. फिर ऐसे प्रेम को व्यक्त करने के लिए किसी प्रदर्शन या 'स्पैशल डे' की जरूरत ही क्या है? हमारे यहां इतने सारे त्योहार हैं, फिर क्यों ऐसे डे की जरूरत महसूस की जा रही है?
हमारे समाज में ऐसा कोई त्योहार नहीं है जिस में बिना पूजापाठ, दानदक्षिणा के प्रेमी या पतिपत्नी बराबर की हैसीयत से एकदूसरे से प्यार का इजहार कर सकें. वैलेंटाइन डे दुनियाभर में बच्चों से ले कर युवाओं और अब बूढ़ों तक प्रेम के इजहार का दिन बनाया गया है.
मगर इस प्रेम को खिलने और व्यक्त करने के लिए भी एकदूसरे के पास वक्त होना चाहिए. आज के भागदौड़ भरे और फास्ट फूड के जमाने में शरमा कर हंसना और हंस कर एकदूसरे को देखना, इस बात के लिए किसी के पास ही नहीं है वक्त और शायद इसीलिए एकदूसरे को जानने और प्रेम व्यक्त करने के लिए वैलेंटाउन डे की वजह ढूंढ़ी जाती है कि इस रूप में ही क्यों न सही मशीन की तरह चलने वाले जीवनरूपी वृक्ष पर प्रेम की कली खिलेगी. वैलेंटाइन डे को अब इसलिए मनाएं कि हमारे अपने त्योहारों में ऐसा सा कोई नहीं है.
हजार चीजों में पश्चिमी देशों का अनुकरण करना और जहां चढ़ावे की बात आए वहां उन का विरोध ही ठीक रहे इन दोनों बातों को टाल कर इसी दिन को हम अपनी जरूरत में ढालें और अपने व्यवहार का रंग नई पीढ़ी की संकल्पनाओं का दें.
प्यार का इजहार
आइए देखते हैं नई पीढ़ी की जिद की खातिर पुरानी पीढ़ी ने किस तरह उन का वैलेंटाउन डे मनाया. प्यार का इजहार करने का यह अवसर सिर्फ इसलिए छोड़ दिया जाए कि यह विदेशी है, गलत है. हमारी पैंट और खाकी निकर भी विदेशी ही है बाकी सारे उपकरण भी विदेशी हैं तो क्या कहा जाए कि ये संस्कृति का हिस्सा हैं.
आज सुबहसुबह ही आईने के सामने खड़ी हो कर अनन्या एकएक ड्रैस ट्राई कर के देख रही थी. हर ड्रैस शरीर पर ओढ़ते हुए वह खुद ही बड़बड़ा रही थी.
'यह ड्रैस कैसी लगती है... ऊं हूं... यह नहीं, यह ड्रैस तो उस ने देखी है. बहुत ओल्ड फैशन है. मौडर्न लुक कैसा लगेगा? ट्रैडिशनल ट्राई करूं क्या ?' कहते हुए अनन्या ने कपड़ों का ढेर लगा दिया.
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