धर्म के नाम पाखंड का बोलबाला
Grihshobha - Hindi|July First 2023
धर्म के नाम पर बढ़ते पाखंड पर रोक लगाना क्यों आवश्यक है, एक बार जानिए जरूर...
पद्मा अग्रवाल
धर्म के नाम पाखंड का बोलबाला

ज जब पूरे विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में नित नए आयाम स्थापित किए जा रहे हैं, वैज्ञानिक चांद और मंगल पर बस्तियां बसाने की कोशिश में प्रयासरत हैं, वहीं हमारा देश सांप्रदायिक विद्वेश और पाखंड में उलझता चला जा रहा है.

धर्म के नाम पर तर्क शास्त्र और शास्त्रार्थ की परंपरा को समाप्त कर दिया है और दिनोंदिन पाखंड में दिखावा बढ़ता जा रहा है जिस की वजह से पाखंड महंगा होता जा रहा है. हमारा मीडिया और सोशल साइट्स पाखंड और अंधविश्वास को बढ़ाने में अपना भरपूर सहयोग कर रही हैं.

गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं, हज करने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है तो ईसाइयों के लिए पवित्र जल बहुत महत्त्वपूर्ण है. वैसे ही सिखों के लिए पवित्र सरोवर और गुरु ग्रंथ साहिब और मुसलमानों के लिए कुरान इन ग्रंथों के अपमान के नाम पर हत्या और दंगे आएदिन की बात है. यह पाखंड नहीं तो क्या है ? साथ में हज या अन्य किसी भी दूरदराज स्थान की तीर्थयात्राएं सामान्य वर्ग के लिए बहुत महंगी होती हैं. वर्तमान सरकार भी तीर्थयात्राओं को आसान व सुविधापूर्ण बनाने के लिए काफी प्रयासरत दिखाई पड़ रही है. आजकल चारों तरफ विशाल मंदिरों, मसजिदों का जाल फैलता चला जा रहा है.

ठगने का धंधा

आज के युग में लोग इतने भयभीत रहने लगे हैं कि हनुमान, शिव एवं शनि मंदिरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. स्कूल और अस्पतालों के स्थान पर मंदिर और मसजिदों की संख्या तथा उन का पुनर्निर्माण धूमधाम एवं भव्य होता जा रहा है. प्रत्येक समाज का अपना अलग त्योहार एवं तीर्थ हो चला है. ज्योतिषी लोगों को उन का भविष्य बताने और दुखों को दूर करने वाले टोटके बता कर समाज में पाखंड और अंधविश्वास फैला कर अपनी रोजीरोटी चलाने का धंधा कर रहे हैं. विभिन्न टीवी चैनल दिनरात जनता को पाखंड के जाल में फंसाने के लिए तरहतरह के उपाय बता कर ठगने का धंधा कर रहे हैं और हमारा सरकारी तंत्र आंखकान बंद कर बैठा है.

हिंदू धर्म में दान करने की महिमा का बारबार वर्णन किया गया है इसलिए लोगों के मन में पाखंड करने की इच्छा तो परिवार में बचपन से ही कूटकूट कर भर दी जाती हैं. दान का महिमामंडन करते हुए कहा है-

'हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कंठस्य भूषणं, श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम्.'

Denne historien er fra July First 2023-utgaven av Grihshobha - Hindi.

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