खुश क्यों नहीं आप्रवासी भारतीय
Grihshobha - Hindi|January First 2024
विदेश गए लोगों का मुख्य ध्येय आर्थिक रूप से विकसित होना है, मगर क्या आप को पता है कि इस के लिए उन्हें अपनी तमाम खुशियों को दांव पर लगाना पड़ता है....
हरपाल
खुश क्यों नहीं आप्रवासी भारतीय

'विदेश' शब्द पढ़ते ही आंखों के आगे सुख, आराम, अमीरी, आजादी और खुलेपन आदि को चित्र उभर आते हैं. इस आकर्षक शब्द के मोहजाल में विश्व का कोई एक देश नहीं बल्कि समूचा विश्व और वहां के हर वर्ग के लोग आकर्षित हैं. दूसरा देश कैसा है, वहां की चीजें कैसी हैं, वहां का वातावरण कैसा है, उस देश का इतिहास क्या रहा है और उस ने कितनी आधुनिक प्रगति की है आदि बातों को जानने, देखने के लिए इनसान अपने मन में एक खिंचाव सा महसूस करता है.

नरेंद्र मोदी और कनाडा के प्रधानमंत्री जास्टिन ट्रूडो का खालिस्तान समर्थक कनाडा नागरिकों को ले कर पैदा हुआ विवाद वहां बसे 14-15 लाख भारतीय मूल के लोगों के लिए एक खतरा है क्योंकि वे अब न तो अपने रिश्तेदारों को बुला पा रहे हैं न भारत जाने का रिस्क ले रहे हैं. अक्तूबर, 2023 में दोनों देशों ने वीजा देना बंद कर दिया था. अपनों से न मिल पाना दूसरे देश में रह रहे लोगों के लिए एक मानसिक जेल बन जाता है.

जीवनसाथी के रूप में विदेशी औरत और पुरुष का आकर्षण कोई आधुनिक समय की देन नहीं है बल्कि यह आदिकाल में भी था. तभी तो किस्सेकहानियों में कहा जाता है कि अमुक देश के राजकुमार ने अमुक देश की राजकुमारी से विवाह रचाया था. वह दूसरे देश को देखने और समझने का कुतूहल ही था जिस ने कोलंबस और वास्कोडिगामा को सागर में उतरने को मजबूर किया. दरअसल, नए की खोज और कुछ नया जानने की कल्पना करना इनसान की प्रकृति है.

क्यों जाते हैं विदेश

यह 'विदेश' का मोह अलगअलग लोगों को अलगअलग तरह का होता है. जहां विकसित देशों के लोग चमकदमक से दूर शांत प्रकृति की गोद में कुछ समय गुजारना चाहते हैं वहीं विकासशील देशों के लोग चमकदमक वाले देशों की चकाचौंध को नजदीक से देखना चाहते हैं. गरीब और पिछड़े देशों के लोग अपने आर्थिक स्तर को बढ़ाने के लिए विदेश जाते हैं.

इसे सीधेसीधे शब्दों में कहें तो अमेरिका, इंगलैंड, कनाडा और फ्रांस के लोग वातावरण व स्थान बदली के लिए विश्वपर्यटन पर निकलते हैं तो चीन, जापान व दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के लोग यूरोप व अमेरिका के देशों को देखने के लिए जाते हैं जो वहां कुछ सप्ताह घूम कर वहां की ढेरों यादें और आनंद समेटे वापस घर लौट आते हैं.

Denne historien er fra January First 2024-utgaven av Grihshobha - Hindi.

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