"अरे यार शशांक तू कुछ टैंशन में दिख रहा है. खैरियत है?"
"अरे कुछ नहीं शुभम. आजकल छुट्टियों में मेरा साला और साली घर आए हुए हैं. इस वजह से मेरी मां का मूड कुछ उखड़ाउखड़ा सा रहता है. भैया भी इस वजह से अनमने से हो गए हैं. अब ससुराल वाले घर आए हैं तो मुझे तो उन्हें अटैंड करना ही पड़ेगा न. सो आजकल मेरा समय उन के साथ बातचीत में ज्यादा बीत रहा है, लेकिन इस वजह से मां से अपने लिए जोरू का गुलाम का तमगा भी पा चुका हूं. क्या करूं यार? शादी की है तो बीवी के रिश्तेदारों से मुंह तो नहीं मोड़ा जा सकता न?" शशांक ने कहा.
"अरे, यह क्या बात हुई भई कि तेरे घर वाले तेरी ससुराल पक्ष के लोगों से नाखुश रहते हैं? ऐसा तो बिलकुल नहीं होना चाहिए,' शुभम बोला.
"वही तो उन के आते ही घर भर में एक अजीब सा ठंडापन पसर गया है. मैं सालेसाली और अवनि के साथ छुट्टी के दिन घूमने फिरने चला जाऊं तो घर में मां और भैया सूज जाते हैं."
"अरे यार तू यहीं तो गलती कर रहा है. तुझे अकेले बस अपनी वाइफ और अपनी ससुराल वालों के साथ घूमने फिरने नहीं जाना चाहिए. अपने पूरे परिवार के साथ जाना चाहिए ताकि दोनों परिवारों में नजदीकी बढ़े.
"मेरे यहां भी आजकल छुट्टियों में मेरी सास आई हुई हैं. भई मेरी सास और मेरी मां में तो दांत काटी दोस्ती हो गई है. दोनों कुछ ही सालों में एकदूसरे से इतनी घुलमिल गई हैं कि पूछो मत. लेकिन इस के लिए तुझे कुछ विशेष प्रयास करने होंगे," शुभम ने कहा.
“क्या एफ्स लगाने होंगे मुझे, लगे हाथों जरा यह भी बता दे?" शशांक ने पूछा.
"देख, पहले तो तुझे अपनी मां को यह एहसास कराना होगा कि अब तेरी पत्नी के पक्ष के सदस्य तेरे पूरे परिवार के अपने हैं. जब भी तू अपनी ससुराल पक्ष के लोगों के साथ घर में बैठे, अपनी मां और भाईभाभी को भी कमरे में बुला ले और उन्हें अपनी और सालेसाली की बातों में शामिल कर इस से धीरेधीरे दोनों पक्षों के बीच ठंडापन कम होगा और उन के मध्य करीबी बढ़ेगी, " शुभाम ने कहा.
"हां यार. यह तो तू बहुत पते की बात कर रहा है."
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