पर्यटन किसी भी समाज की आर्थिक रीढ़ होते हैं. जितना संपन्न समाज होगा, पर्यटन की संभावनाएं उतनी ही अधिक होंगी. भारत में पर्यटन के माने वर्षों पहले तीर्थस्थलों की यात्रा तक सीमित थे. साथ ही कुछ घुमंतू किस्म के युवा पर्वतों पहाड़ों का रुख कर लेते थे. धीरेधीरे पर्यटन का विस्तार होने के साथ इस के माने भी बदले. आज यह व्यवसाय खूब फूलफल रहा है. यहां तक कि निम्न मध्यवर्ग का इंसान भी अपनी हैसियत के हिसाब से परिवार के साथ घूमने का प्रोग्राम जरूर बनाता है. हफ्ते के 5 दिन काम करने के बाद 2 दिन इंसान रिफ्रैश होने के मूड में रहता है और निकल पड़ता है किसी शांत मनोरम जगह की ओर.
पर्यटन के ये ट्रेंड इसलिए भी जोरों पर हैं कि आज युवा दंपती अच्छा पैसा कमा रहे हैं. पैसे का पहले जैसा अकाल नहीं है और इंसान पैसे को बचा कर रखने वाली प्रवृत्ति से बाहर निकल कर उपभोग करने में यकीन करने लगा है. उस का यकीन है कि पैसा माध्यम है लक्ष्य नहीं. सच पैसा सुख हासिल करने का साधन है.
बात को आगे बढ़ाते हुए रुख करते हैं अपने निकटतम शहर की ओर जो विश्वभर से पर्यटकों की पसंद है, जिसे झीलों का शहर कहते हैं और नाम है नैनीताल, नैनीताल वर्षों से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है. ऐजुकेशन हब माने जाने वाला अंगरेजों का यह प्रिय शहर अपनी आबोहवा, सुंदरता समेत कई खूबियों के लिए जाना जाता है. कुछ वर्ष पहले तक ही उत्तराखंड में गिनेचुने पर्यटन स्थल थे जिन में नैनीताल, मसूरी, रानीखेत जैसे नाम फिंगरटिप्स पर होते थे.
सीमित साधन लक्ष्य पूर्ति में बाधा
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