उम्र बढ़ने के साथसाथ त्वचा पर कई तरह उके बदलाव नजर आने लगते हैं. इन में त्वचा पर झुर्रियां और फाइनलाइंस पड़ना सब से आम हैं. दरअसल, जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है त्वचा में कोलोजन और इलास्टिन नामक प्रोटीन की मात्रा लगातार कम होने लगती है. ऐसे में त्वचा की नमी, चमक और खूबसूरती कम होने लगती है, साथ ही त्वचा पर झुर्रियां और महीन रेखाएं भी पड़ने लगती हैं. इस का असर सब से ज्यादा चेहरे पर देखने को मिलता है.
आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों के कारण भी झुर्रियां, त्वचा का रंग बदलना और दागधब्बे आदि दिखने लगते हैं. कुछ साल पहले तक झुर्रियां बढ़ती उम्र की पहचान हुआ करती थीं लेकिन बदलते लाइफस्टाइल के बीच 30 से 35 साल के लोगों में भी झुर्रियों की समस्या होने लगी है. इस से बचने के लिए पहले यह समझना जरूरी है कि झुर्रियां आती क्यों हैं?
पराबैगनी विकिरण और फोटोएजिंग
सूर्य की रोशनी में रहना त्वचा की जल्दी उम्र बढ़ने (फोटोएजिंग नामक प्रक्रिया) का सब से महत्त्वपूर्ण कारण है. त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाली 2 प्रकार की सूर्य की किरणें पराबैगनी ए (यूवीए) और पराबैंगनी बी (यूवीबी) हैं. पराबैगनी विकिरण के संपर्क में आने से त्वचा की जल्दी उम्र बढ़ने के अधिकांश लक्षण दिखाई देते हैं. ज्यादातर नुकसान 20 साल की उम्र तक होता है क्योंकि लोग कम उम्र में लंबे समय तक धूप में रहते हैं यानी त्वचा पर दिखने से कई साल पहले ही नुकसान हो जाता है.
यूवीए त्वचा की गहरी परतों को प्रभावित करती हैं. पृथ्वी तक पहुंचने वाली अधिकांश पराबैगनी किरणें वीए होती हैं. वीए, यूवीबी जितनी तीव्र नहीं होतीं. वीए किरणें पूरा दिन और पूरे वर्ष में समान रूप से तीव्र होती हैं. वीए बादलों और कांच के माध्यम से गुजर सकती हैं. हालांकि वीबी जितनी तीव्र या कैंसरकारी नहीं होतीं लेकिन वीबी की तुलना में हमें बहुत अधिक वीए प्राप्त होती हैं. यूवीबी सनबर्न का मुख्य कारण हैं. यह ज्यादातर त्वचा की बाहरी परतों को प्रभावित करती हैं.
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