राजस्थानी संस्कृति भारतीय सभ्यता का एक अभिन्न अंग है. यहां की बोली, पहनावा, परंपराएं सभी भारतीयता से ओतप्रोत हैं. जहां संस्कृति की बात आती है, वहीं भाषा, पहनावा, परंपरा इन सभी को बहुत महत्त्व प्रदान किया जाता है. फिर भला राजस्थानी खाना इस का भाग क्यों नहीं बने न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी राजस्थानी खाना प्रसिद्ध है. राजस्थानी खाने में यहां की खुशबू आती है.
राजस्थान की मिट्टी सरसों, बाजरा, गेहूं, तिलहन आदि की जननी है और भारतवर्ष में कई उपजें ऐसी हैं जो सर्वाधिक राजस्थान में ही उगाई जाती हैं. इन सब चीजों से राजस्थान में अलगअलग तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं, राजस्थान की गलीगली में सर्दियों के और गरमियों के खाने की धूम रहती है.
कुछ खाने रसभरे, कुछ चटाकेदार तो कुछ नमकीन और कुछ मिठास से भरे हुए होते हैं. जहां राजस्थान दर्शन करने जाओ वहीं कुछ न कुछ विशेष प्रकार का भोजन खाने को मिल जाता है. देशीविदेशी सैलानियों का विशेष आकर्षण केवल यहां के पर्यटन स्थल ही नहीं हैं यहां का खाना भी इस की संस्कृति का विशेष भाग है जिस के लगाव से पर्यटक आते हैं और लजीज खाने का लुत्फ उठाते हैं,
स्वाद का अनोखापन संस्कृति
वैसे तो बहुत सारे खाने प्रसिद्ध हैं पर कुछ खाने विशेष रूप से यहां की पैदाइशें हैं. स्वाद का अनोखापन संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करता है. मुख्य राजस्थानी खानों में भुजिया, सांगरी, दालबाटी चूरमा, दाल की पूरी, मालपूआ, घेवर, हलदी की सब्जी, बीकानेर का रसगुल्ला, पटोर की सब्जी, बाजरे की रोटी, पंचकूट की सब्जी, गट्टे की सब्जी आदि आते हैं. राजस्थान में जोधपुर की मावे की कचौरी और मिर्ची बड़ी प्रसिद्ध है.
कुछ खाने ऐसे हैं जो अलग प्रकार से बनाए जाते हैं. सब से पहले इस सांस्कृतिक श्रृंखला में आती है राजस्थान की कैर सांगरी की सब्जी जो स्वाद में अलग और बनाने में अनोखी. राजस्थानी जायके के साथ मौसम के अनुकूल कैर सांगरी की सब्जी बहुत ही अच्छी होती है. इस सब्जी की सब से बड़ी विशेषता यह है कि यह 3-4 दिन तक खराब नहीं होती है. राजस्थानी संस्कृति के विशेष त्योहार शीतला अष्टमी पर इसे मुख्य तौर पर बनाया जाता है. राजस्थान में इस तरह की सब्जियां बनाई जाती हैं जो घरेलू रसोई के सामान से ही बनाई जाती हैं.
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