बदलते मौसम में सरसों की फसल में कीट प्रबंधन

सरसों रबी में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। सरसों का खाद्य तेल के रुप में तिलहनी फसलों में मुख्य स्थान है। खाद्य तेल के रूप में सरसों की मांग अधिक रहने के कारण पिछले कुछ वर्षों से किसानों को सरसों की खेती से अच्छा लाभ हो रहा है। लेकिन समय-समय पर इसमें अनेक प्रकार के कीट आक्रमण करते है, जोकि सरसों की पैदावार पर सीधा प्रभाव डालते हैं। ऐसे में यह बहुत जरुरी है कि इन कीटों की सही पहचान करके इनका उचित नियंत्रण किया जाये, जिससे कि सरसों के उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है। सरसों की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट इस प्रकार से हैं।
1. सरसों का चेपा/अल/माहू/एफिड यह सरसों की फसल का मुख्य कीट है। यह हल्के पीले या हल्के हरे रंग का कीट होता है यह कीट आकार में छोटा तथा मुलायम होता है। इस कीट के शिशु और प्रौढ़ पौधों के विभिन्न भागों जैसे कि पत्तियों, फूलों, फलियों और तनों पर रहकर रस चूसते रहते हैं जिससे कि पौधे कमजोर हो जाते हैं। उनकी बढ़वार रुक जाती है तथा उन पर फलियां कम लगती हैं जिसमें दानों का आकार भी छोटा रह जाता है। यह कीट पौधों पर मधु स्राव भी करते हैं, जिस पर काले रंग के कवक का प्रकोप हो जाता है तथा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित हो जाती है। इस कीट का सबसे अधिक प्रकोप दिसंबर के अंतिम और जनवरी के प्रथम पखवाड़े में होता है, जब औसत तापमान 10-20 डिग्री सेल्सियस तथा आर्द्रता 75 प्रतिशत होती है।
प्रबंधन :
1. अगर सरसों की फसल की बुआई 20 अक्टूबर से पहले कर ली जाती है, तो सरसों में माहू का प्रकोप कम होता है।
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