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वन के दम पर हैं हम

Aha Zindagi

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March 2025

भौतिक विकास के रथ पर सवार मानव स्वयं को भले ही सर्वशक्तिमान और सर्वसमर्थ समझ ले, किंतु उसका जीवन विभिन्न जीव-जंतुओं से लेकर मौसम और जल जैसे प्रकृति के आधारभूत तत्वों पर आश्रित है।

- डॉ. सुदेश वाघमारे

वन के दम पर हैं हम

मार्च माह में आने वाले कुछ विशेष दिवस इस तथ्य की याद दिलाते हैं। इस बार की आमुख कथा इन्हीं दिवसों के बहाने धरती पर जीवन और पारितंत्र को सुचारु रखने की प्रार्थना जैसी है।

आमुख कथा का पहला लेख आंखें खोल देने वाला है। यह बता रहा है कि वन और वन्यजीवन की अनुपस्थिति में मानव जीवन कहां होगा, होगा भी कि नहीं?

एक राजकुमारी प्रसव के लिए एक सुंदर गुप्त बागीचा चुनती है। ऐसा उपवन जिसमें सिर्फ़ उसका प्रवेश हो, बाक़ी सबका वर्जित। बदले में बागीचे को जीवन का स्पर्श देती है। यदि उसे स्पर्श न दे तो उद्यान उसके बिना उजाड़ हो जाता है। गिव एंड टेक, यानी सहजीवन। भारतीय वनों की वह अप्रतिम राजकुमारी है ब्लास्टोफेगा क्वाड्रीसेप्स और उसका प्रसूति उपवन है एक फल जो ऊपर से तो एक फल दिखाई देता है, परंतु वह होता एक पूरा पुष्पक्रम है जिसे विज्ञान की भाषा में साइकोनियम कहते हैं। यह बाग़ीचा जिस फल पर लगता है उसके नीचे ही बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। जी हां वही पीपल जिसकी पर्णाकृति पर देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया जाता है। दुनिया में जितने भी फिग हैं यानी अंजीर प्रजाति के वृक्ष हैं- जैसे- पीपल, बरगद, गुलर, पाकर आदि- उनमें निषेचन करने का काम अलग-अलग वास्प (ततैया) करते हैं। ये फिग वृक्ष और संबंधित वास्प दोनों इस क़दर अन्योन्याश्रित हैं कि छोटा-सा ततैया समाप्त हो जाएगा तो विशाल वृक्ष की वह प्रजाति भी लुप्त हो जाएगी। ऐसे वास्प की लगभग एक हज़ार क़िस्में हैं। इनका अपना शरीर सौष्ठव है जो सांचे में ढला है और करोड़ों साल के विकास का परिणाम है। प्रकृति और वनों के रहस्यों को हम कितना कम जानते हैं- उन वनों को जिन पर दुनिया की सौ करोड़ और भारत की दस करोड़ आबादी आश्रय और आजीविका के लिए सीधे निर्भर है।

बाघ से बसता है जीवन

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Dit verhaal komt uit de March 2025-editie van Aha Zindagi.

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