मेलजोल के अवसर बुफे पार्टी

*ति के ऑफिस में एक सहकर्मी की बेटी की शादी थी. औफिस से घर आ कर पति ने मुझे कार्ड दिखाया. मैं ने उन्हें कहा कि वे अकेले जा कर शादी अटैंड कर आएं. शादियों का सीजन था और बहुत सारे कार्ड घर में आए थे. अपनी व्यस्त दिनचर्या के साथ सब जगह जाना संभव भी नहीं हो पाता. हां, कोशिश जरूर रहती है कि थोड़ी देर के लिए जा कर सब से मेलमुलाकात व शगुन दे कर वापस आ जाऊं. हमारी यह बातचीत चल ही रही थी कि पति के मोबाइल पर घंटी बजी.
'सोमेश का फोन है, ' उन्होंने बताया.
वही सोमेशजी जिन की बेटी की शादी का कार्ड आज मिला था. फोन उठाने पर सोमेशजी ने मुझ से भी बात करने की इच्छा जाहिर की. दरअसल मेरे पति उन के सीनियर थे और स्वभाव से भी सज्जन, इसलिए स्टाफ के सभी लोग उन से बहुत ही अदब से पेश आते थे. पति ने मेरी तरफ फोन बढ़ाते हुए कहा, 'लो, बात करो. ' मैंने सोमेशजी को बिटिया की शादी की बधाई दी और उन्होंने मुझ से जरूर आने का आग्रह किया. उन के आग्रह में इतनी आत्मीयता थी कि मैं मना नहीं कर पाई.
'हम दोनों जरूर आएंगे, भाईसाहब, ' कह कर मैं ने फोन रख दिया. तय तिथि को हम दोनों पतिपत्नी विवाह समारोह में शामिल होने के लिए निकल गए. बैंक्वेट हौल में पहुंच कर जैसे ही कार पार्क कर रहे थे तो सोमेशजी वहीं दिख गए. बहुत ही आदर के साथ वे हम दोनों को लौन में ले गए, वहां पर कुछ और मित्रों से मुलाकातें हुईं.
यकीनन इस तरह के आयोजन में जाने का मेरा मकसद यही रहता है कि अपने पुराने परिचितों से मुलाकात हो जाए और कुछ नए लोगों से भी परिचय हो जाए.
समाज में इस तरह का मेलजोल बहुत जरूरी है खासकर आज के समय में जब एक मोबाइल में सारी दुनिया कैद हुई जा रही है. मानो, किसी को किसी की जरूरत ही नहीं है. एक घर में 4 लोग हैं लेकिन सब अपने अपने मोबाइल में सिर दे कर बैठे रहते हैं. ऐसे में ये समारोह अवसादग्रस्त मन के लिए दवा का काम करते हैं.
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