दास ने परोसा सादा भोजन
Akhand Gyan - Hindi|May 2020
मुझे सोने के दीप की नहीं, बस तेरे प्रेम दीप के निरन्तर जलते रहने की चिंता है। पगले! सोने के दीप की जगह काश तू अपने सूक्ष्म अहं को मिट्टी कर एक साधारण सा मिट्टी का दीप ही जला देता!
दास ने परोसा सादा भोजन

औपचारिकताएँ, लाग, लपेट,

ये प्रेम नगर के विधान नहीं,

त्याग तर्क, बन 'प्रेम बिंदु'

'प्रेम सिंधु' में ही समाना होगा।

भूल सुख-दुःख सब अपने,

विरक्त हो निज इच्छा से,

आराध्य के आनंद को ही

निज-चिंतन बनाना होगा।

विधि-विधान और साज-बाज

कब रिझाएँ प्रियतम प्यारा,

सरल बाल मन रख कर

बड़प्पन से पार पाना होगा।

This story is from the May 2020 edition of Akhand Gyan - Hindi.

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एका बना वैष्णव वीर!
Akhand Gyan - Hindi

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आपने पिछले प्रकाशित अंक (मार्च 2020) में पढ़ा था, एका शयन कक्ष में अपने गुरुदेव जनार्दन स्वामी की चरण-सेवा कर रहा था। सद्गुरु स्वामी योगनिद्रा में प्रवेश कर समाधिस्थ हो गए थे। इतने में, सेवारत एका को उस कक्ष के भीतर अलौकिक दृश्य दिखाई देने लगे। श्री कृष्ण की द्वापरकालीन अद्भुत लीलाएँ उसे अनुभूति रूप में प्रत्यक्ष होती गईं। इन दिव्यानुभूतियों के प्रभाव से एका को आभास हुआ जैसे कि एक महामानव उसकी देह में प्रवेश कर गया हो। तभी एक दरोगा कक्ष के द्वार पर आया और हाँफते-हाँफते उसने सूचना दी कि 'शत्रु सेना ने देवगढ़ पर चढ़ाई कर दी है। अतः हमारी सेना मुख्य फाटक पर जनार्दन स्वामी के नेतृत्व की प्रतीक्षा में है।' एका ने सद्गुरु स्वामी की समाधिस्थ स्थिति में विघ्न डालना उचित नहीं समझा और स्वयं उनकी युद्ध की पोशाक धारण करके मुख्य फाटक पर पहुँच गया। अब आगे...

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'सुख' 'धन' से ज्यादा महंगा!
Akhand Gyan - Hindi

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कैसा होगा तृतीय विश्व युद्ध?
Akhand Gyan - Hindi

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अपने संग चला लो, हे प्रभु!
Akhand Gyan - Hindi

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