बाढ़ की आपदा को रोकने और उसे अवसर में बदलने की नीति बने
Modern Kheti - Hindi|15th August 2023
जल प्रबंधन इस तरह से हो कि समुद्र में गिरने से पहले उसे हम अपनी जरूरत, क्षमता और उपयोगिता के आधार पर रोकने की व्यवस्था कर लें, जल संरक्षण के उपायों को प्राथमिकता दें तथा बाढ़ नियंत्रण का स्थायी और नियमित प्रबंध करें।
पूरन चंद सरीन
बाढ़ की आपदा को रोकने और उसे अवसर में बदलने की नीति बने

वर्षा एक प्राकृतिक उपहार है। पहली फुहार में भीगने का आनंद ही कुछ और है। हल्की बूंदें, शीतल वायु शरीर को सुहाती हैं। चारों दिशाओं में प्रकृति का सौंदर्य दिखाई पड़ता है। श्रावण मास की यही महिमा है। जब यही वर्षा इतनी हो जाए कि सहन करना कठिन हो जाए, कुदरत का कहर बन जाए, जीवन अस्त-व्यस्त हो जाए और मनुष्य त्राहिमाम कर उठे, तब इसे आपदा बनने में देर नहीं लगती। गरजते बादल डराते हैं, पानी की कल-कल करती ध्वनि कर्कश लगती है और नदियों से निकलता संगीत दहाड़ बनकर भयभीत करता हैं।

बहाव तेज होता जाता है और जो भी सामने आए, उसे लीलने को तैयार जल विभीषिका बन जाता है, बाढ़ का रूप धर लेता है, सब ओर पानी ही पानी दिखाई देता है और तब यह प्राकृतिक प्रकोप बन जाता है। इसका मतलब यह कि हमने वर्षा रूपी प्राकृतिक उपहार को ग्रहण करने की क्षमता का विकास नहीं किया। हमने जलमित्र बनकर उसका स्वागत करने के लिए आवश्यक प्रबंध नहीं किए। गंगा ने भी धरती पर तब अवतरण किया, जब शिवजी ने अपनी जटाओं में उसे समेट लिया और राजा भगीरथ ने उसे उसकी दिशा दिखाई।

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