घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
Modern Kheti - Hindi|15th November 2024
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'

यह बात नाबार्ड द्वारा ग्रामीण आबादी पर 2021-22 में किये गये सर्वे में बहुत साफ नजर आती है। देश में कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों के जरिए जीवनयापन कर रहे ग्रामीण परिवारों की संख्या बढ़ रही है और यह 57 प्रतिशत तक पहुंच गई है जो 2016-17 में 48 प्रतिशत थी।

नाबार्ड ने यह सर्वे जुलाई 2021 से जून 2022 के बीच किया था जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के साथ 50 हजार तक की आबादी वाले अर्द्ध शहरी क्षेत्रों को भी शामिल किया गया था। सर्वे में कृषक परिवारों की परिभाषा में 6500 रुपये से अधिक की कृषि आय वाले परिवारों को शामिल किया गया है। इसके पहले 2016-17 के सर्वे में यह सीमा 5000 रुपये थी।

रिपोर्ट के मुताबिक, कृषक परिवारों की औसत मासिक आय, गैर-कृषक परिवारों की औसत मासिक आय और सभी परिवारों की औसत मासिक आय से अधिक है। देश में सभी ग्रामीण परिवारों की औसत मासिक आय 12,698 रुपये है, जबकि कृषक परिवारों की औसत मासिक आय 13,661 रुपये और गैरकृषक परिवारों की औसत आय 11,438 रुपये है। वहीं, 201617 के सर्वे में

कृषक परिवारों की औसत मासिक आय 8,931 रुपये जबकि गैर-कृषक परिवारों की 7,269 रुपये थी। कृषक परिवारों के लिए खेती सबसे बड़ा आय का स्रोत है, जो कुल मासिक आय का लगभग एक-तिहाई (33 प्रतिशत) है। इसके बाद सरकारी या निजी सेवाओं का 23 प्रतिशत, मजदूरी का 16 प्रतिशत और अन्य उद्यमों का 15 प्रतिशत योगदान है। दूसरी ओर, गैर-कृषक परिवारों की आय में सरकारी या निजी नौकरियों का सबसे बड़ा हिस्सा 57 प्रतिशत है, जबकि मजदूरी से गैर-कृषक परिवारों को 26 प्रतिशत आय होती है।

This story is from the 15th November 2024 edition of Modern Kheti - Hindi.

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