परन्तु कुछ ऐसे बिन्दु हैं जिन पर यदि किसान समय पर ध्यान दें तो इस उत्पादन में किसान और अधिक बढ़ोतरी प्राप्त कर सकते हैं। कृषि विभाग व कृषि विश्वविद्यालय समय-समय पर किसानों को बीजोपचार व खरपतवार नियन्त्रण के विषय में जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। यद्यपि किसान इस जानकारी के अनुसार कृषि कार्य करते भी हैं लेकिन कुछ कमियां छोड़ देते हैं और हमें अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते। इस लेख में इन्हीं बिन्दुओं पर लिखा गया है।
1. बीजोपचार: गेहूं की फसल में बहुत सी ऐसी बीमारियां लगती हैं जिनकी रोकथाम केवल बीजोपचार से ही सम्भव है। किसान बीज उपचार करते भी हैं लेकिन बीजाई के दौरान समय की कमी के कारण सही ढंग से बीच उपचार नहीं करते। इससे बीज उपचार पर होने वाला खर्च भी हो जाता है और वांछित परिणाम नहीं मिलते।
अ) गेहूं में दीमक से बचाव के लिये 40 कि.ग्रा. बीज को 60 मि.ली. क्लोरपाइरिफॉस 20 ई.सी. या 100 मि. ली. फारमोथियान 25 ई. सी. दवा से उपचारित करें। इन कीटनाशकों में से किसी एक को पानी में मिलाकर 2 लीटर घोल बना लें। बीज को पक्के फर्श पर या पोलीथीन शीट पर एकसार बिछा लें और इस दो लीटर घोल को बीज के ऊपर छिड़क दें और बीज को हिला दें। किसान भाई घोल को बराबर रुप से छिड़कने के लिये यदि स्प्रे पम्प का प्रयोग करें तो घोल सभी दानों पर समान रुप से लगेगा और हाथ से छिड़काव की बजाये घोल जमीन पर या पोलीथीन शीट में नीचे बह कर बेकार नहीं जाएगा। इसके बाद उपचारित बीज को रात भर सूखने दें। तद्पश्चात इस उपचारित बीज को फफूंद जनक रोगों से बचाने के लिये फफूंदनाशियों से उपचारित करें।
ब) खुली कंगियारी (लुज स्मट) व पत्तों की कंगियारी की रोकथाम के लिये उपर्युक्त उपचारित बीज को वीटावैक्स या बैविस्टीन 2 ग्राम या टैब्यूकॉनाजाल (रैक्सिल-2 डी.एस.) 1 ग्राम प्रति कि. ग्रा. की दर से सूखा उपचार करें।
स) करनाल बंट की रोग की रोकथाम के लिये कीटनाशी दवा द्वारा उपचारित बीज को थीराम 2 ग्राम या टैब्यूकॉनाजाल (रैक्सिल-2 डी.एस.) 1 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
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जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
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