फसल विविधीकरण की दृष्टि से गर्म मैदानी इलाकों में वर्तमान समय में आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती एवं सेब की खेती का प्रचलन बढ़ रहा है। वातावरण एवं तापमान के अनुरूप ये फसलें किसानों को अच्छा मुनाफा दे रहीं है। लेकिन सही समय पर और उचित तरीके से इनमें कटाई-छंटाई न की जाये तो उत्पादन सीधे तौर पर प्रभावित होता है। आज इस लेख के माध्यम से हम इन फल वृक्षों की कटाई-छंटाई (जो कि वृक्षों की सही बढ़वार, वृक्षों की लम्बाई, शाखाओं की वार्षिक वृद्धि एवं अच्छे छत्र प्रबंधन के लिए आवश्यक हैं) एवं लगाई जाने वाली प्रमुख किस्मों पर प्रकाश डालेंगे।
आडू : आडू में कटाई-छंटाई का विशेष महत्व है। आड़ू के वृक्ष को हमेशा खुला तंत्र प्रणाली (ओपन सैंटर सिस्टम) में काट कर छत्र बनाया जाता हैं जिसमें मुख्य तने को ऊपर नहीं बढ़ने दिया जाता हैं तथा पाश्र्व (साइड) शाखाओं को ज्यादा से ज्यादा वृद्धि कराकर, छत्र बनाने पर जोर दिया जाता है। इसको बनाने के लिए वृक्षारोपण के समय ही एक साल के पौधों को हम 90 सैं. मी. की लम्बाई में ऊपर से काट देते हैं एवं 45 सें. मी. तक जमीन की सतह से कोई भी शाखा को रखते नहीं हैं। तना निचे से बिल्कुल साफ कर देते हैं, ऊपर की शाखाओं को 4-8 बड रखते हुए आधा-आधा काट देते हैं, मुख्य तने को आगे नहीं बढ़ने दिया जाता है। अगले वर्ष इन्हीं प्राथमिक शाखाओं पर अगली शाखाओं का विकास होता हैं जो एक साल पुरानी होने पर फल देती हैं। ध्यान रहे प्रारंभिक 2-3 वर्षों तक ज्यादा फल न लें। छत्र प्रबंधन पर ध्यान दें। एक बार 2-3 स्तर तक शाखाओं द्वारा अच्छा छत्र बन जाने पर, हम हर साल नियमित रूप से हम शाखाओं की कटाई करते हैं। आडू की जिस शाखा पर एक बार फल लग जाये उसमें दोबारा कोई फल नहीं लगता हैं। अतः हर साल शाखाओं की कटाई की जाती हैं जिससे नई शाखाओं का विकास हो सके, जो एक साल पुरानी होने पर फल देती हैं। शाखाओं को देखेंगे तो पाएंगे, आड़ की शाखाओं में तीन कलियों का समूह दिखाई देता हैं। जिसकी किनारे की दो कलियाँ फूल एवं फल बनाती हैं तथा बीच वाली कली (आंख) पत्ते एवं नई शाखा का उत्पत्ति केंद्र बनती हैं।
This story is from the 15th February 2024 edition of Modern Kheti - Hindi.
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।