अक्सर देखा जाता है, जब भी किसान इस बात का ध्यान किये बिना कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं जो मधुमक्खियों तथा अन्य परागणकर्ताओं को क्षति पहुचाते हैं और जब अपनी फसलों पर अंधाधुंध कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं तो ऐसी स्थिति में उत्पादन कम तथा नुकसान की संभावनायें अधिक होती हैं। फसलों में फूल आने की अवस्था में कीटनाशकों का प्रयोग करने से मधुमक्खियों पर सबसे घातक असर होता है। मधुमक्खियों पर सबसे अधिक दुष्प्रभाव धूल वाले कीटनाशकों का होता है। घुलनशील अथवा तरल कीटनाशकों का प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है, क्योंकि ये पदार्थ पौधों की सतह से भीतर शीघ्र सोख लिये जाते हैं। अन्य कीटनाशक जैसे दानेदार अथवा सर्वांगी (सिस्टेमिक) कीटनाशकों का उपयोग अपेक्षाकृत सुरक्षित रहता है। मधुमक्खियों पर कीटनाशकों का बहुत ही विपरीत प्रभाव होता है, जिनके बारे में इस प्रस्तुत लेख में विस्तार से चर्चा की गई है।
मधुमक्खियों पर जहरीले कीटनाशकों के प्रभाव व लक्षण
मधुमक्खियों में कीटनाशकों के विषैले प्रभाव का सबसे सामान्य लक्षण मधुमक्खियाँ तेजी से मौनगृह के सामने तथा उसके आसपास मर कर गिरी हुई मिलती हैं। और मौनगृहों में मरा हुआ शिशु पाया जाता है। इस प्रकार अधिक संख्या में मधुमक्खियों के मरने के कारण ब्रूड की रक्षा व देखभाल करने वाली मक्खियों के अभाव में भूख के कारण शिशु मर जाते हैं।
भोजन संग्रह के लिए बाहर जाने वाली मधुमक्खियों में, यह क्षति बहुत अधिक होती है और इनकी संख्या भी घट जाती है।
कीटनाशकों से प्रभावित मधुमक्खियों का दिशा ज्ञान प्रभावित हो जाता है और दिशा भटकने के कारण इनके प्राकृतिक शत्रु इन्हें हानि पहुँचाते हैं।
कीटनाशकों से प्रभावित मधुमक्खियों के मौनगृह में प्रवेश करने पर मौनगृह की मधुमक्खियाँ क्रोधित व उत्तेजित हो जाती हैं।
This story is from the 1st April 2024 edition of Modern Kheti - Hindi.
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
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जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
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साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
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भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
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सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
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खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।