इसके अतिरिक्त राज्य का औसतन भू-जल स्तर भी गिरता जा रहा है जो कि 2016 में 19.6 मीटर से गिरकर 2023 में 21.8 मीटर तक पहुंच गया है। रोपित धान में खेत को कद्दू किया जाता है ताकि उसमें पानी ज्यादा समय तक ठहर सके लेकिन इससे मिट्टी के सूक्ष्म छिद्र बंद हो जाते हैं। इस प्रक्रिया के कारण खेत में पानी का रिसाव नहीं होता। नतीजन भूजल पुनर्भरण नहीं हो पाता। दूसरी ओर मशीनीकरण के इस दौर में धान की रोपाई के लिए प्रवासी श्रमिक की उपलब्धता में भी कमी आई है। इन समस्याओं के बावजूद भी किसान धान की फसल को छोड़कर दूसरी फसलों पर नहीं जाना चाहता क्योकि धान खरीफ सीजन की आश्वस्त फसल है। अतः इन सभी बातों को मध्यनजर रखते हुए, धान की सीधी बिजाई किसानों के लिए एक बढ़िया विकल्प एवं वरदान साबित हो सकती हैं।
भूमि: धान की सीधी बिजाई रेतीली जमीन में न करें व धान की सीधी बिजाई रोपित धान ली जाने वाली भूमि पर ही करें। हालांकि मध्यम संरचना वाली भूमि ज्यादा उपयुक्त है।
खेत की तैयारी: सीधी बिजाई वाले खेत में पहले लेजर समतलीकरण लगा दें जिससे पानी की बचत व बीज का जमाव एकसमान होता है।
बिजाई का समय: बासमती धान की सीधी बिजाई 25 जून तक की जा सकती है। जून माह से पहले बासमती धान की अगेती बिजाई नहीं करनी चाहिए क्योकि इससे पैदावार में कमी आएगी व लागत भी अधिक होगी। वही गैर बासमती धान की सीधी बिजाई का समय 25 मई से 15 जून है। ध्यान रहे कि फसल का जमाव मानसून शुरू होने से पहले हो जाए।
किस्में: बासमती धान की सभी किस्में पी. बी. 1, पी.बी. 1121, पी. बी. 1509, पी.बी. 1885, पी. बी. 1886 सीधी बिजाई के लिए उपयुक्त हैं। गैर बासमती धान एवं संकर प्रजाति की कम व मध्यम अवधी वाली किस्में भी धान की सीधी बिजाई में प्रयोग की जा सकती हैं।
बीज की मात्रा एवं उपचार: बीज की 8.0 कि.ग्रा./एकड़ मात्रा उपयुक्त है। बीज का उपचार सिफारिशशुदा दवाओं के घोल (10 कि.ग्रा. बीज हेतु 10 ग्राम बाविस्टीन + 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लिन या 2.5 ग्राम पौसामाईसिन का 10 लीटर पानी में घोल) में 24 घंटे डुबोकर करें। तदुपरान्त, बीज को 1-2 घंटे छाया में सुखाएं ताकि अतिरिक्त नमी उड़ जाए व ड्रिल द्वारा बिजाई योग्य हो जाएं।
This story is from the 1st June 2024 edition of Modern Kheti - Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the 1st June 2024 edition of Modern Kheti - Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
रबी सीजन में इस विधि से करें प्याज की बुवाई
अगर प्याज की खेती करने का विचार बना रहे हैं, तो आज हम आपके लिए रबी सीजन में प्याज की खेती से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं। आइये जानें, रबी सीजन में प्याज की अच्छी पैदावार के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना जरुरी होता है?
देश का भविष्य हैं प्रकृति की गोद में उगने वाले लंबे वनस्पतिक रेशे
भारत में जूट की खेती सदियों से होती चली आ रही है और यह उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध कराने तथा रोजगार के व्यापक अवसर पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती चली आ रही है। 60 के दशक के दौरान जूट भारत के लिए एक महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा अर्जक था और 70 के दशक के \"स्वर्णिम काल\" तक इस खेती में चतुर्मुखी विकास हुआ। 80 के दशक के दौरान गिरावट शुरू हुई और कृत्रिम तंतुओं से कठोर प्रतिस्पर्धा के कारण जूट का गौरव घट गया।
सब्जियों के उत्पादन का मूल्यवर्धन तकनीक, प्रतिबंध और समाधान
वैश्विक स्तर पर सब्जियों के उत्पादन और विविध सब्जी उत्पाद के कारोबार में व्यापक वृद्धि हुई है। बढ़ती आय, घटते परिवहन लागत, नई उन्नत प्रसंस्करण तकनीक और वैश्वीकरण ने इस विकास के लिए प्रेरित किया है। लेकिन यह वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और प्रसंस्करण के धीमी विकास से मेल नहीं करता है। क्षय को कम करने, विस्तार और विविधीकरण के लिए प्रोसैस्सिंग सबसे प्रभावी उपाय है। प्रसंस्करण गतिविधियां, ताजा उपज के लिए बाजार के अवसरों में वृद्धि करते हुए मूल्य वृद्धि करते हैं तथा पोस्टहर्स्ट हानियों को कम करते हैं।
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक गंभीर समस्या
विश्वभर में जलवायु परिवर्तन का विषय चर्चा का मुद्दा बना है। इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन वैश्विक समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है तथा इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी जरुरत बन गई है।
टिकाऊ कृषि विकास के लिए मृदा स्वास्थ्य आवश्यक...
मृदा में उपस्थित जैविक कार्बन उसके प्राणों के समान है, जो मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को बनाए रखने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जलवायु परिवर्तन एवं वैश्विक ऊष्मीकरण ने जैविक कार्बन की ह्रास की दर को और अधिक गति प्रदान की है, जिस कारण मिट्टी की उर्वरता घट रही है। अतः मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखने एवं कार्बन प्रच्छादन को बढ़ाने के लिए अनुशंसित प्रबंधन विधियों को अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है।
सब्जी उत्पादन का बढ़ता रुझान
सब्जियां हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई हैं। सब्जियों से हमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होते हैं जैसे प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम इत्यादि । ये पोषक तत्व हमें शारीरिक रूप से मजबूत बनाए रखने और लंबा जीवन जीने में सहायक बनाते हैं।
सस्य क्रियाओं द्वारा कीट नियंत्रणः
सस्य क्रियाओं द्वारा कीट नियंत्रण, किसान अपना उत्पादन तथा आमदनी बढ़ाने के लिए फसल उत्पादन की समरत विधियों में तकनीकों का उपयोग करता है। इसके अन्तर्गत फसल की किस्म, बुआई का समय एवं विधि, भू-परिष्करण, खेत और खेती की स्वच्छता, उर्वरक प्रबंधन, जल प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन और कटाई का समय आदि का समावेश होता है।
बदलते मौसम के अनुसार नर्सरी प्रबंधन
नर्सरी प्रबंधन में प्रतिकूल मौसम के प्रभाव के कारण किसानों को पूरी फसल में नुकसान हो सकता है। इसके प्रबंधन के लिए उन्हें नई तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए जैसे कि प्रो ट्रे में नर्सरी व पॉली टनल के माध्यम से हम बदलते हुए मौसम के अनुसार नर्सरी उत्पादन व उसका प्रबंधन कर सकते हैं क्योंकि इन तकनीकों का प्रमुख कार्य यह है कि हम नियंत्रित वातावरण में नर्सरी उत्पादन व उसका प्रबंधन कर सकते हैं।
धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन
धान एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है, जो पूरे विश्व की आधी से ज्यादा आबादी को भोजन प्रदान करती है। चावल के उत्पादन में सर्वप्रथम चाईना के बाद भारत दूसरे नंबर पर आता है।
कृषि-खाद्य प्रणालियों में एएमआर को नियंत्रण में करने के लिए उचित कदम उठाने चाहिएं
रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एएमआर एक ऐसी 'मूक महामारी', है जो न केवल इंसान और मवेशियों के स्वास्थ्य बल्कि खाद्य सुरक्षा और विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। आज जिस तरह से वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र में एंटीबायोटिक्स दवाओं का बेतहाशा उपयोग हो रहा है, वो चिंता का विषय है। सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमैंट (सीएसई) लम्बे समय से रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बढ़ते खतरे को लेकर चेताता रहा है।