![एकीकृत मछली पालन एक उत्तम विकल्प एकीकृत मछली पालन एक उत्तम विकल्प](https://cdn.magzter.com/1344336963/1718629049/articles/KwJB6weId1718688240584/1718688544804.jpg)
आज भारत मत्स्य उत्पादक देश के रूप में उभर रहा है। एक समय था, जब मछलियों को तालाब, नदी या सागर के भरोसे रखा जाता था, परन्तु बदलते वैज्ञानिक परिवेश में इसके लिए कृत्रिम जलाशय बनाए जा रहे हैं, जहां वे सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, जो प्राकृतिक रूप से नदी, तालाब और सागर में होती हैं। छोटे शहरों और गांवों के वे युवा, जो कम शिक्षित हैं, वे भी मछली पालन उद्योग लगा कर अच्छी आजीविका अर्जित कर सकते हैं। लेख के माध्यम से हम मछली पालन की विधि के साथ-साथ किस प्रकार यह मिश्रित खेती का एक अच्छा विकल्प है, इस विषय पर चर्चा करेंगे।
मछली पालन की तैयारी:
मछली हेतु तालाब की तैयारी बरसात के पूर्व ही कर लेना उपयुक्त रहता है। मछली पालन सभी प्रकार के छोटे-बड़े मौसमी तथा बारहमासी तालाबों में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसे तालाब जिनमें अन्य जलीय वानस्पतिक फसलें जैसे सिंघाड़ा, कमलगट्टा, मुरार (ढसे) आदि ली जाती हैं, वे भी मत्स्य पालन हेतु सर्वथा उपयुक्त होते हैं।
मछली पालन हेतु तालाब में जो खाद, उर्वरक, अन्य खाद्य पदार्थ इत्यादि डाले जाते हैं उनसे तालाब की मिट्टी तथा पानी की उर्वरकता बढ़ती है, परिणामस्वरूप फसल की पैदावार भी बढ़ती है। इन वानस्पतिक फसलों के कचरे जो तालाब के पानी में सड़ गल जाते हैं वह पानी व मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाता है, जिससे मछली के लिए सर्वोत्तम प्राकृतिक आहार प्लैकटान (प्लवक) उत्पन्न होता है।
इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं और आपस में पैदावार बढ़ाने में सहायक होते हैं। धान के खेतों में भी जहां जून-जुलाई से अक्टूबर-नवंबर तक पर्याप्त पानी भरा रहता है, मछली पालन कर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है। धान के खेतों में मछली पालन के लिए एक अलग प्रकार की तैयारी करने की आवश्यकता होती है।
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![ग्रीन हाउस में फूलों की खेती ग्रीन हाउस में फूलों की खेती](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1979251/M5bhbR7TX1738741680962/1738741830703.jpg)
ग्रीन हाउस में फूलों की खेती
हमारे देश की जलवायु ऐसी है जहां सभी प्रकार के फूल उगाये जाते हैं। किन्तु वर्तमान समय की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नियंत्रित वातावरण में फूल उपजाए जाते हैं, जो सामान्यतः खुले वातावरण में ठीक से नहीं उपजाए जा सकते हैं।
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एफपीओ: भारतीय किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण संस्थान
भारत के कृषि परिदृश्य में छोटे और सीमांत किसान अधिक ( 86 प्रतिशत) हैं। इनमें से अनेक किसान सीमित संसाधन और छोटी जोत के कारण मोलभाव करने की स्थिति में नहीं होते।
![खाद्य पदार्थों में मिलावट पहचान एवं बचाव खाद्य पदार्थों में मिलावट पहचान एवं बचाव](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1979251/nM5NjB6eV1738740931155/1738741662746.jpg)
खाद्य पदार्थों में मिलावट पहचान एवं बचाव
हम सब घरेलू खान-पान वाली वस्तुएँ आमतौर पर बाजार से खरीद कर ही इस्तेमाल करते हैं। कुछ मुनाफाखोर इनमें नकली एवं मिलावटी वस्तुएं मिलाकर बिक्री बढ़ाने के लिए खपतकारों को बेच देते हैं। इन नकली एवं मिलावटी वस्तुओं से सेहत खराब होती है और शरीर का भी बहुत नुक्सान होता है। हमें बाजार से वस्तुएं खरीदते समय सचेत रहना चाहिए। आओ हम असली नकली एवं मिलावटी वस्तुओं की पहचान करने के बारे में जानकारी सांझा करें।
![हरी खाद सवारें मिट्टी के गुण हरी खाद सवारें मिट्टी के गुण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1979251/0Okpvi7Kj1738743070512/1738743212749.jpg)
हरी खाद सवारें मिट्टी के गुण
फसलों की अच्छी पैदावार बनाये रखने के लिए मिट्टी के भौतिक, रसायनिक एवं जैविक गुणों का बढ़िया अवस्था में होना बहुत जरूरी है।
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जलवायु संकट का सामना करने में नई तकनीकों की जरुरत
कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में जलवायु संकट का सामना करने के लिए नई तकनीक, तौर-तरीके और सहकारी संस्थाएं मददगार साबित हो सकती हैं।
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देश में पशुधन के पोषण हेतु हरे और पौष्टिक चारे की बहुत कमी है। निरंतर घटती जोत के कारण मात्र 4 प्रतिशत कृषि भूमि पर हरे चारे का उत्पादन संभव हो पा रहा है।
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बायोचार कीटनाशकों का मिट्टी में कम कर सकता है प्रभाव
दुनिया के कई हिस्सों में डीडीटी के कारण मिट्टी का प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनी हुई है। शोधकर्ताओं ने इस जहर से होने वाले पारिस्थितिक खतरों को प्रबंधित करने के लिए इसे बायोचार के साथ मिलाकर एक नई विधि तैयार की है।
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कीट नियंत्रण में फेरोमेन ट्रेप का उपयोग
फेरोमेन एक प्रकार का कार्बनिक पदार्थ है जो वैज्ञानिकों द्वारा संश्लेषित करके इसे बड़े पैमाने पर इसका उपयोग किया जा सकता है। जो उस जाति के नर कीट को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
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कृषि रसायन : दवा या जहर
प्राकृतिक, कृषि एवं वातावरण की स्थिरता के लिए हमें कृषि में जैविक प्रबंधन को बढ़ावा देना होगा। जैविक खेती के महत्वपूर्ण स्तम्भ जैसे जैविक खाद, केंचुआ खाद, जीवाणु खाद, बायोगैस स्लरी का उपयोग, कीटों व बीमारियों का जैव नियंत्रण, फसल चक्र प्रबंधन आदि को अपनाना ही होगा।
![कृषि की तरक्की के लिए नए संस्थानों पर दारोमदार कृषि की तरक्की के लिए नए संस्थानों पर दारोमदार](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1979251/Dhr8AhBWJ1738742219082/1738742702638.jpg)
कृषि की तरक्की के लिए नए संस्थानों पर दारोमदार
कृषि क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 18 प्रतिशत का योगदान करने के साथ राष्ट्रीय कार्यबल के 45 प्रतिशत को रोजगार भी प्रदान करता है।