हल हो गई मुश्किल
Champak - Hindi|January First 2024
शाम ढलते ही भिनभिनाने वाली बजी मच्छर अपने छिपने की जगह से बाहर निकली. वह दिन से भूखी थी. उसे एक ऐसे इनसान की तलाश थी, जिस का खून चूस कर वह अपनी भूख मिटा सके. एक घर में घुसते ही उसे बुजुर्ग जीवन अंकल दिखाई दे गए. वे एक कुरसी पर बैठे थे और दूसरी पर अपना दायां पैर रखा हुआ था. उन्होंने एक पतला सा पाजामा पहन रखा था. शायद मच्छरों के डर से उन्होंने यह काम किया था. बजी ने इधरउधर देखा, आसपास कोई नहीं था और जीवन अंकल कुरसी पर बैठे ऊंघ रहे थे.
डा. के. रानी
हल हो गई मुश्किल

इतना सुंदर अवसर पा कर बजी बहुत खुश हुई और वह अपनी भूख मिटाने के लिए उन के पैर के नजदीक पहुंच गई. उस ने पतले कपड़े के बीच से अपनी सुंडी अंदर डालने की कोशिश की, लेकिन वह पैर में घुसी ही नहीं. उस ने सुंडी पकड़ कर अपने दोनों हाथों से उसे अच्छे ढंग से पोंछा और फिर कोशिश की. इस बार भी असफलता ही उस के हाथ लगी. कई बार कोशिश करने पर वह जीवन अंकल के पैर को काटने में सफल नहीं हो सकी. यह देख कर बजी बहुत परेशान हो गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या गलत हो गया है? इस से पहले भी वह कपड़ों के ऊपर से इनसान को काट कर आराम से अपनी भूख मिटा लेती थी.

उसे लगा कि वह अब बूढ़ी हो गई है, जिस की वजह से वह एक इनसान को काटने में सफल नहीं हो पा रही थी. बजी हताश हो कर तुरंत अपने ठिकाने की ओर बढ़ गई. उसी समय एक अन्य मच्छर शार्पी भोजन की तलाश में बाहर निकल रही थी.

“तुम इतनी जल्दी क्यों लौट आई बजी?" शार्पी ने पूछा.

“क्या बताऊं, आज गजब हो गया. तुम भी सुनोगी तो चौंक जाओगी. मुझे लगता है कि मैं बूढ़ी हो गई हूं, शार्पी. मेरे बस का अब कुछ नहीं रहा."

“ऐसा क्यों कह रही हो? तो तुम अभी जवान हो और सबकुछ कर सकती हो.”

बजी ने शार्पी को कुछ देर पहले की घटना ज्यों की त्यों सुना दी. उसे सुन कर शार्पी भी चिंता में पड़ गई.

“हिम्मत रखो बजी. यदि तुम इतनी जल्दी उम्मीद छोड़ दोगी तो हमारे परिवार का क्या होगा?”

“बगैर खाएपीए मैं जिंदा कैसे रहूंगी? मैं अब इनसानों को काटने में असमर्थ हो गई हूं, शार्पी. लगता है कि मेरा अंत समय नजदीक आ गया है, " बजी दुखी हो कर बोली.

उस की बात सुन कर शार्पी की भी चिंता बढ़ गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि अचानक बजी को क्या हो गया?

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