पौराणिक कथा है कि जब देवता और दानवों ने मिलकर समुंद्र मंथन किया तो हलाहल विष निकला, जिसके प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि में हलचल मच गई। सृष्टि की रक्षा के लिए महादेव ने विष का पान कर अपने कंठ में धारण किया और नीलकंठ कहलाए। जब विष का ताप शिव जी के ऊपर बढ़ने लगा, तब हलाहल विष का प्रभाव कम करने के लिए देवराज इंद्र ने पूरे महीने घनघोर वर्षा की, जिससे हलाहल का प्रभाव कुछ कम हुआ, लेकिन अत्यधिक वर्षा से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने अपने मस्तक पर चंद्र धारण किया। चंद्रमा की शीतलता के प्रभाव से भगवान शिव को विष से राहत मिली। यह घटना सावन मास में घटी थी, इसीलिए सावन मास का अत्यधिक महत्व है। तभी से हर वर्ष सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाने की परंपरा है। इस बार सावन में अधिमास होने के कारण भक्तों को शिव को जल अर्पण-अभिषेक करने के लिए एक अतिरिक्त माह मिलेगा, जिससे भक्त उनकी दोगुनी पूजा कर अपने जीवन के हर दुख और परेशानी को दूर कर सकते हैं।
क्या है अधिक मास
जिस महीने में सूर्य संक्रांति न हो, वह महीना अधिमास अथवा अधिक मास होता है। सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चांद्र मास की वृद्धि होती है। लोक व्यवहार में इसी को अधिक मास और आध्यात्मिक विषयों में अत्यंत पुण्यदायी होने के कारण पुरुषोत्तम मास आदि नामों से जाना जाता है। ज्योतिष गणना के अनुसार, एक सौरवर्ष का मान 365 दिन, 6 घंटे और 11 सेकंड के लगभग है, जबकि चांद्र वर्ष 354 दिन एवं लगभग 9 घंटे का होता है। दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष 10 दिन, 21 घंटे, 9 मिनट का अंतर पड़ता है। इस अंतर में सामंजस्य स्थापित करने के लिए 32 महीने, 16 दिन, 4 घड़ी, बीतने पर अधिक मास का निर्णय किया जाता है। सावन में पड़ने वाले अधिक मास की समयावधि में विवाह, मुंडन, देव-प्रतिष्ठा, गृह प्रवेश, काम्य-व्रतानुष्ठान, नई गाड़ी खरीदना आदि अन्य शुभ कर्मों का आरंभ करना वर्जित माना जाता है, परंतु किसी रोग आदि कष्ट निवृत्ति के लिए जपादि अनुष्ठान, वर्षफल जन्मदिन, संतान के जन्म संबंधी कृत्य, गर्भाधान, पुंसवन और सीमांत जैसे संस्कार एवं पहले से जारी निर्माण कार्य किए जा सकते हैं।
शनि के गुरु हैं महादेव
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