श्रीमद्भागवत का मूर्तिमान स्वरूप है वृंदावन का प्रेम मंदिर
Sadhana Path|August 2022
रसिकों की प्राण - प्रिय स्थली हैश्रीधाम वृंदावन। यहां की परम पावन भूमि पर आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व अनन्त कोटि ब्रह्मांड नायक, सर्वेश्वर, रास - रासेश्वर, लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी आहलादिनी शक्ति राधा रानी ने अनेकानेक दिव्यातिदिव्य प्रेम लीलाएं की थीं।
गोपाल चतुर्वेदी
श्रीमद्भागवत का मूर्तिमान स्वरूप है वृंदावन का प्रेम मंदिर

साथ ही राधा कृष्ण ने अपने प्रति गोप-गोपियों द्वारा किए गए निष्काम प्रेम के अधीन होकर जिस ब्रज रस की वर्षा की थी उसी को विश्व के पंचम मूल जगद्गुरु व प्रेमा भक्ति के प्रमुख आचार्य, भक्तियोग रसावतार, जगद्गुरु स्वामी श्री कृपालु जी महाराज ने प्रेम मंदिर के रूप में संसार के समक्ष मूर्तिमान स्वरूप में प्रस्तुत किया है। वस्तुतः प्रेम मंदिर श्यामा-श्याम द्वारा अपने प्रियजनों को लुटाए गए मधुरतम ब्रज रस की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है।

मंदिर का लोकार्पण

यद्यपि मंदिरों का शहर कहे जाने वाले वृंदावन में पांच हजार से भी अधिक मंदिर हैं परन्तु प्रेम मंदिर उन सभी में अद्भुत व विलक्षण है। जगद्गुरु स्वामी श्री कृपालु जी महाराज के कृपामय संरक्षण में संचालित जगद्गुरु कृपालु परिषद ने वृंदावन के छटीकरा रोड पर 54 एकड़ क्षेत्रफल में भव्य प्रेम मंदिर स्थापित कर जो कीर्तिमान स्थापित किया है वह स्तुत्य है। इस मंदिर का शिलान्यास 14 जनवरी 2001 को स्वयं श्री कृपालु जी के कर-कमलों द्वारा लाखों श्रद्धालुओं- भक्तों की उपस्थिति में हुआ था। इस मंदिर का लोकार्पण 17 फरवरी, 2012 को जगद्गुरु स्वामी श्री कृपालु जी महाराज के कर-कमलों द्वारा हुआ। श्वेत इटालियन करारे मार्बल पत्थर से बना यह अभूतपूर्व व ऐतिहासिक मंदिर लगभग 11 वर्ष में हजारों शिल्पकारों व श्रमिकों द्वारा किए गए दिन-रात के कड़े परिश्रम से बनकर तैयार हुआ है। यह मंदिर श्रीमद्भागवत का मूर्तिमान स्वरूप है। इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इस मंदिर के द्वारा प्राचीन भारतीय शिल्पकला का पुनर्जागरण हुआ है।

मंदिर की बनावट

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