विशेष कर 60 वर्ष की उम्र के बाद यह रोग परेशान करता है। शुरुआत में पतली दरार आती है, जिसे माइक्रो फ्लेयर कहते हैं, जो दर्द का कारण बनती है। इसमें रोगी की हड्डियों में सूजन, अकड़न और जोड़ों में दर्द होता है। यह बीमारी किसी को भी हो सकती है। मगर अधिकतर मामलों में यह समस्या अधिक उम्र के लोगों में ही होती है। सर्दियों में लोगों की जीवनशैली बदल जाती । गर्मी के मौसम के मुकाबले खान-पान बढ़ जाता है, सुबह की एक्सरसाइज या वाकिंग नहीं हो पाती, सुबह लेट उठना, धूप नहीं लेना आदि कारणों से आर्थराइटिस की समस्या बढ़ जाती है। आर्थराइटिस का दर्द इतना तेज होता है कि व्यक्ति को न केवल चलनेफिरने बल्कि घुटनों को मोड़ने में भी बहुत परेशानी होती हैं। घुटनों में दर्द होने के साथ-साथ दर्द के स्थान पर सूजन भी आ जाती है। कभी-कभी दर्द के कारण बुखार भी हो जाता है और यहां तक कि जोड़ों का आकार भी टेढ़ा हो जाता है। इस रोग की सबसे बड़ी पहचान ये है कि रात को जोड़ों का दर्द बढ़ता है और सुबह अकड़न महसूस होती है। यदि शीघ्र ही उपचार कर नियंत्रण नहीं किया गया तो जोड़ों को स्थायी नुकसान हो सकता है।
गठिया के पीछे यूरिक एसिड की जबर्दस्त भूमिका रहती है। यूरिक एसिड मूत्र की खराबी से उत्पन्न होता है। यह प्राय: गुर्दे से बाहर आता है। जब कभी गुर्दे से मूत्र कम आने (यह सामान्य कारण है) अथवा मूत्र अधिक बनने से सामान्य स्तर भंग होता है, तो यूरिक एसिड का रक्त स्तर बढ़ जाता है और यूरिक एसिड के क्रिस्टल भिन्न-भिन्न जोड़ों पर जमा हो जाते हैं। रक्षात्मक कोशिकाएं इन क्रिस्टलों को ग्रहण कर लेते हैं जिसके कारण जोड़ों वाली जगहों पर दर्द देने वाले पदार्थ निर्मुक्त हो जाते हैं। इसी से प्रभावित जोड़ खराब होते हैं।
आर्थराइटिस के प्रकार
रूमेटाइड आर्थराइटिस - यह इस बीमारी का बहुत अधिक पाया जाने वाला गंभीर रूप है। इस आर्थराइटिस का समय पर प्रभावी उपचार करवाना आवश्यक होता है वरना बीमारी बढ़ने पर एक साल के अन्दर ही शरीर के जोड़ों को काफी नुकसान हो जाता है।
सोरायटिक आर्थराइटिस - आर्थराइटिस के दर्द का यह रूप सोरायसिस के साथ प्रकट होता है। समय पर और सही इलाज न होने पर यह बीमारी काफी घातक और लाइलाज हो जाती है।
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पहली सर्दी में नवजात शिशु का रखें खास ध्यान
वैसे तो सर्दियों का मौसम सभी के लिए कुछ अलग ही एहसास लेकर आता है, लेकिन नवजात और उसकी मां के लिए ये मौसम बेहद ख़ास होता है। नवजात शिशु की मां हर पल इसी चिंता में डूबी रहती है कि कहीं बच्चे को ठंड और वो बीमार न पड़ जाए।
वास्तु उपायों से बनाएं नववर्ष को मंगलमय
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ज्योतिर्लिंग, रावणेश्वर महादेव
शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है पूर्वी भारत में देवधर के 'रावणेश्वर महादेव'। उनके देवधर में आवास की कथा बेहद रोचक और अद्भुत है। लंकापति रावण की मां शिवभक्त थी।
ओशो और विवेकः एक प्रेम कथा
सू एपलटन अपने पूर्व जन्म से ही ओशो की प्रेमिका रही है। अप्रैल 1971 में ओशो द्वारा संन्यास दीक्षा ग्रहण की। ओशो उसे नया नाम मा योग विवेक दिया। मा विवेक दिसंबर 09, 1989 को अपने भौतिक जीवन से पृथक हो गई।
मुझे कभी मृत मृत समझना मैं सदा वर्तमान हूं
ओशो ने मृत्यु को उसी सहजता और हर्ष से वरण किया था जिस प्रकार से एक आम व्यक्ति जीवन को करता है। उन्होंने जगत को यही संदेश दिया कि मृत्यु के प्रति सदा जागरूक रहो, उसे वरण करो। आज ओशो भले ही अपना शरीर छोड़ चुके हों लेकिन अपने विचारों के माध्यम से वो आज विश्व में कहीं ज्यादा विस्तृत, विशाल रूप से मौजूद हैं।
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गर्मियों की तपिश के बाद ठंडी हवाओं के चलते ही मन राहत महसूस करने लगता है, मगर यही सर्द हवाएं अपने साथ रूखापन, खांसी और जुकाम जैसी सौगात लेकर आती हैं, जो बड़े बुजुर्गों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी परेशानी का सबब बन जाती हैं। अगर आप भी सर्दियों में अपने बच्चों को रखना चाहती हैं स्वस्थ, तो बरतें ये खास सावधानियां -
डायबिटीज के कारण यूटीआई का खतरा
यूं तो यूटीआई महिलाओं में होने वाली एक आम समस्या है, पर मधुमेह के कारण यूटीआई के संक्रमण का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है।
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आजकल लोग वजन कम करने के लिए कई तरह के तरीके अपनाते हैं, जिसमें एक निश्चित डाइट फॉलो करना सबसे अहम तरीका है। आइए जानते हैं विभिन्न तरह के डाइट के प्रकारों के बारे में -