नववर्ष का अभ्युदय होते ही मानव जीवन एक सृजनात्मक सोच से भर जाता है। मानव मात्र एक नई आशा, नई उमंगों के साथ पुनः जीवन को नए रूप में ढालने की कोशिश करता है। सार्थक परिवर्तन का यह पर्व रोम-रोम में नई ऊर्जा, ताजगी व अनकही सुखद मस्ती से सराबोर कर देता है। उम्र कोई भी हो चाहे बूढ़ा या जवान दिसंबर के अंत होते ही सूर्योदय की नई किरणों की तरह साथ में नव आलोक के साथ झांकने वाला नया वर्ष भी सुखद आशा में विभोर या प्रतीक्षारत मग्न हो जाता है। ये उत्साह साल के अंत तक थोड़ा थक सा जाता है और यही एक रस जीता हुआ तन-मन नववर्ष के आगमन पर पुनर्जागरण के साथ ताकतवर व कुछ और संकल्पित ऊर्जा के साथ परम वृद्ध दिखने लगता है।
हमारे मानव जीवन को पुनर्जागृत करने के लिए नए साल की नई भोर के साथ कुछ जागरूक प्रतिज्ञा जीवन कल्याण के लिए लेनी चाहिए, जिससे ये शुभारंभ हमारे जीवन को नई दिशा, नई रोशनी व नई राह दे। जैसा कि एक आध्यात्मिक संदेश है- 'हम सुधरेंगे जग सुधरेगा' के सिद्धांत पर नए संकल्प लेने चाहिए। ये बात अलग है कि हमारे द्वारा किए गए वचनबद्ध संकल्प कुछ तो भाग खड़े होते हैं। हम अपनी आदतों के शिकार होकर वही करते हैं, जो हम करते रहते थे, लेकिन इसके लिए संकल्प दोषी नहीं होते हैं। दोषी होती हैं संकल्प लेने वाले की बुरी आदतें व उनका परिस्थितियों से घायल, आवारा मन और आंतरिक आत्मशक्ति व लगन की कमी।
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तुलसी से दूर करें वास्तुदोष
हिन्दू धर्म में तुलसी का पौधा हर घर-आंगन की शोभा है। तुलसी सिर्फ हमारे घर की शोभा ही नहीं बल्कि शुभ फलदायी भी है। कैसे, जानें इस लेख से।
क्यों हुआ तुलसी का विवाह?
कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है, किंतु उत्तर भारत में इसका कुछ ज्यादा ही महत्त्व है। नवमी, दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना बड़ा ही शुभ माना जाता है।
बड़ी अनोखी है कार्तिक स्नान की महिमा
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बारह पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व सर्वाधिक है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसका नाम हैं सत्यः नानक
सिरवों के प्रथम गुरु थे नानक | अंधविश्वास एवं आडंबरों के विरोधी गुरुनानक का प्रकाश उत्सव अर्थात् उनका जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु नानक का मानना था कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। संपूर्ण विश्व उन्हें सांप्रदायिक एकता, शांति एवं सद्भाव के लिए स्मरण करता है।
सूर्योपासना एवं श्रद्धा के चार दिन
भगवान सूर्य को समर्पित है आस्था का महापर्व छठ । ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से सूर्य देवता मनोकामना पूर्ण करते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है, जिस कारण इस पर्व का नाम छठ पड़ा। जानें इस लेख से छठ पर्व की महत्ता।
एक समाज, एक निष्ठा एवं श्रद्धा की छटा का पर्व 'छठ'
छठ की दिनोंदिन बढ़ती आस्था और लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि कुछ तो विशेष है इस पर्व में जो सबको अपनी ओर खींच लेता है। पूजा के दौरान अपने लोकगीतों को गाते हुए, जमीन से जुड़ी परम्पराओं को निभाते हुए हर वर्ग भेद मिट जाता है। सबका एक साथ आकर बिना किसी भेदभाव के ईश्वर का ध्यान करना... यही तो भारतीय संस्कृति है, और इसीलिए छठ है भारतीय संस्कृति का प्रतीक।
जानें किड्स की वर्चुअल दुनिया
सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जाल में सिर्फ बड़े ही नहीं बच्चे भी फंसते जा रहे हैं, जिसका परिणाम यह है कि बच्चे धीरे-धीरे वर्चुअल दुनिया में ज़्यादा व्यस्त रहने की वजह से वास्तविक दुनिया से दूर होते जा रहे हैं।
सेहत के साथ लें स्वाद का लुत्फ
अच्छे खाने का शौकीन भला कौन नहीं होता है। खाना अगर स्वाद के साथ सेहतमंद भी हो तो बात ही क्या है। सवाल ये उठता है कि अपनी पसंदीदा खाद्य सामग्रियों का सेवन करके फिट कैसे रहा जाए?
लंबी सीटिंग से सेहत को खतरा
लगातार बैठना आज वजह बन रहा कई स्वास्थ्य समस्याओं की। इन्हें नज़र अंदाज करना खतरनाक हो सकता है। जानिए कुछ ऐसे ही परिणामों के बारे में-
योगा सीखो सिखाओ और बन जाओ लखपति
हमारे पास पैसे नहीं और ललक है लखपति बनने की, ऐसी चाह वाले व्यक्ति को हरदम लगेगा कि कैसे हम बनेंगे पैसे वाले। किंतु यकीन मानिए कि आप निश्चित रूप से लखपति बन सकते हैं केवल योगा का प्रशिक्षण लेकर और योगा सिखाने से ही।