अमेरिका में ओशो के रजनीश पुरम आश्रम के बारे में जो भी लोग जानते हैं या जिन्होंने भी उसे देखा-सुना है वह जानते हैं कि आश्रम अपने आप में एक चमत्कार था, ओशो व ओशो के संन्यासियों की सफलता का अद्भुत परिणाम व प्रमाण था पर यदि वह इतना ही अच्छा एवं सही था तो ध्वस्त क्यों हुआ? जहां तमाम देवी-देवताओं के मठ-मंदिर एवं गुरुओं के आश्रम आज न केवल विद्यमान है बल्कि वह और फल-फूल रहे हैं। उनकी शाखाओं में और वृद्धि हो रही है तो ओशो का रजनीशपुरम ध्वस्त क्यों हुआ? रजनीशपुरम के ध्वस्त होने के पीछे उसका अतुलनीय रूप से सफल होना था। देखा जाए तो वह इस पृथ्वी पर किसी चमत्कार से कम नहीं था। उसका अद्भुत होना ही अमेरिका के लिए एक चुनौती बन गया, जिसको नष्ट करना ही अमेरिकियों के लिए अपने वजूद को जिंदा रखने का एक मात्र उपाय था।
आश्रम ओशो का था, देशनाएं ओशो की थी इसलिए इस विषय में जितना बेहतर ओशो बता सकते हैं उतना कोई और नहीं। फिर 'अमृत की बूंद पड़ी' प्रश्नोत्तर प्रवचन शृंखला में ओशो ने ऐसे सवालों का जवाब देते हुए कहा कि-
पहली बात, वह प्रयोग कभी असफल नहीं हुआ। वह प्रयोग बेहद सफल रहा है। और उसकी सफलता ही मुसीबत की जड़ थी। जो प्रयोग असफल होते हैं, उनकी फिक्र कौन करता है ? अमेरिकन सरकार या ईसाइयत या कोई भी उस प्रयोग में क्यों उत्सुक हो, जो असफल हो गया ? वह नितांत सफल रहा है। यह बात उनकी समझ के बाहर थी। उसकी सफलता ही उनकी समस्या थी। हमें जो भी करना था, हमने कर लिया। पांच हजार युवा लोगों का एक छोटा-सा कम्यून आज तक के इतिहास में, जगत की सबसे बड़ी ताकत से संघर्ष करते हुए, पांच साल तक कम्यून को निर्मित करता रहा। और वह कम्यून ऐसे रेगिस्तान में निर्मित किया गया था, जिसका कभी उपयोग नहीं किया गया था जिसे कभी उर्वरित नहीं बनाया गया या, जिसने कभी फूल नहीं देखे थे और न कभी एक भी पक्षी देखा था। पांच साल के भीतर वह एक मरुद्यान बन गया। हमने पांच हजार लोगों के लिए खुद मकान बनाए जिसमें सब आधुनिक सुविधा थी। हमने जो सड़कें बनायीं, वे किसी भी सरकारी सड़कों से बेहतर थीं - इसमें अमेरिका भी शामिल है।
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