कोरोना के संक्रमण पर काबू पाने के लिए लगाई गई पूर्णबंदी के दौर में व्यापक पैमाने पर लोगों को रोजगार और रोजीरोटी से वंचित होना पड़ा और इसके साथसाथ घर में कैद की स्थिति में असंतुलन, आक्रामकता एवं तनावपूर्ण रहने की नौबत आई। जाहिर है, यह दोतरफा दबाव की स्थिति थी, जिसने जीवन में अनेकानेक बदलावों के साथ व्यवहार में निराशा, हताशा और हिंसा की मनोवृत्ति को बढ़ाया। इस दौरान महिलाओं एवं बच्चों से मारपीट, उनकी प्रताड़ना, अपमान आदि की घटनाएं बढ़ीं। पति-पत्नी और पूरा परिवार लम्बे समय तक घर के अंदर रहने को मजबूर हुआ, जिससे जीवन में ऊब, चिड़चिडापन एवं वैचारिक टकराव कुछ अधिक तीखे हुए और महिलाओं एवं बच्चों के साथ मारपीट की घटनाएं बढ़ीं।
इन नये बने त्रासद हालातों की पड़ताल करने के लिये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ओर से देश के बाईस राज्यों और केंद्र प्रदेशों में एक अध्ययन कराया गया जिसमें घरेलू हिंसा के बीच महिलाओं की मौजूदा स्थिति को लेकर जो तस्वीर उभरी है, वह चिंताजनक है और हमारे अब तक के सामाजिक विकास पर सवालिया निशान है। महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी हिंसक एवं त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने बार-बार हम सबको शर्मसार किया है। भारत के विकास की गाथा पर यह नया अध्ययन किसी तमाचे से कम नहीं है। इस व्यापक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक कई राज्यों में तीस फीसद से ज्यादा महिलाएं अपने पति द्वारा शारीरिक और यौन हिंसा की शिकार हुई हैं।
सबसे बुरी दशा कर्नाटक, असम, मिजोरम, तेलंगाना और बिहार में है। कर्नाटक में पीड़ित महिलाओं की तादाद करीब पैंतालीस फीसद और बिहार में चालीस फीसद है। दूसरे राज्यों में भी स्थिति इससे बहुत अलग नहीं है। कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ऐसी घटनाओं में तेज इजाफा होने की आशंकाएं भावी पारिवारिक संरचना के लिये चिन्ताजनक है। संयुक्त राष्ट्र भी कोरोना महाव्याधि के दौर में महिलाओं और लड़कियों के प्रति घरेलू हिंसा के मामलों में 'भयावह बढ़ोतरी' दर्ज किये जाने पर चिंता जता चुका है। यह बेहद अफसोसजनक है कि जिस महामारी की चुनौतियों से उपजी परिस्थितियों से पुरुषों और महिलाओं को बराबर स्तर पर जूझना पड़ रहा है, उसमें महिलाओं को इसकी दोहरी मार झेलनी पड़ी है।
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सर्दियों में भी रखें वास्तु का ख्याल
सर्दी के इस मौसम में कुछ वास्तु उपाय करके आप सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं कौन से हैं वो उपाय आइए लेख के माध्यम से जानें?
विश्व का महापर्व नववर्ष
विश्व के सभी देशों की अपनी अलग परंपराएं और पर्व होते हैं। किन्तु नववर्ष एक ऐसा पर्व है जो सभी देशों द्वारा एक साथ मनाया जाता है। भले ही इस पर्व को मनाने के तरीके अलग हों।
हम नित्य नवीन हों
जीवन में नवीनता का अर्थ क्या है नित्य नवीनता, नित्यनूतन सकारात्मकता। उस परमात्मा के उद्देश्य को पूर्ण करना जिसने बड़े प्रेम से सृष्टि और मनुष्य की रचना की है, इस शरीर में सब कुछ होते हुए भी प्राण निकलने पर इस शरीर में दुर्गंध आने लगती है। अगर हम एक पेंटिंग बनाते हैं तो हम कितने खुश होते हैं यदि कोई पेंटिंग खराब कर दे तो हमें कितना बुरा लगता है। हम सब ईश्वर की बनाई हुई एक सुन्दर कृति हैं हम जब बुरे कर्म करते हैं तो उस परमेश्वर को कितना दुख होता होगा, नवीन हम तभी बनेंगे जब हम नकारात्मक विचार त्यागेंगे और जीवन के सकारात्मक उद्देश्य को आत्मसात करेंगे। महात्मागांधी ने कहा है -
सामाजिक आदर्श का प्रतीक बने कुम्भ मेला
स्नान, दान का महापर्व कुम्भ आस्था का ऐसा मेला है जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु जन पहुंचते हैं। मेला किन अर्थों में महत्त्वपूर्ण व किस प्रकार सामाजिक आदर्श का प्रतीक बन सकता है। आइए जानते हैं लेख से।
हिन्दू ग्रंथों में महाकुम्भ
महाकुम्भ की महिमा का गुणगान हमारे धर्मग्रंथों में भी मिलता है। महाकुम्भ पर क्या कहते हैं हमारे धर्म ग्रंथ व कुम्भ में स्नान के महत्त्व को? आइए जानते हैं लेख से
जीवनशैली में बदलाव लाकर बनाएं पैन्क्रियाज को सेहतमंद
पाचन संबंधी परेशानियां हैं तो पेट से संबंधित कोई भी छोटी-सी समस्या को न करें नजरअंदाज, ऐसा न हो कि पैन्क्रियाटाइटिस या पैन्क्रियाटिक कैंसर जैसे रोग का करना पड़े सामना। सावधान रहें, स्वच्छ और पौष्टिक आहार को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
शरीर ही बताए अच्छी सेहत का राज
अब आपके दिमाग में सवाल उठेगा कि हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत अच्छी है, इसका पता कैसे लगे? तो बता दें कि यह जानने के लिए आपको डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है। आपका शरीर खुद ही बताएगा कि आप आंतरिक रूप से स्वस्थ हैं कि नहीं। इन 11 लक्षणों से जानें, जो सेहतमंद होने की निशानी है।
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साल के 12 महीनों में सिर्फ कैलेंडर के पेज ही नहीं बदलते बल्कि हर महीने के अनुसार हमारा मूड भी बदलता रहता है। तो चलिए जानते हैं क्यों और कैसे बदल जाता है हर मौसम के हिसाब से मूड...
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