सूर्योपासना एवं श्रद्धा के चार दिन
Sadhana Path|November 2024
भगवान सूर्य को समर्पित है आस्था का महापर्व छठ । ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से सूर्य देवता मनोकामना पूर्ण करते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है, जिस कारण इस पर्व का नाम छठ पड़ा। जानें इस लेख से छठ पर्व की महत्ता।
सुशील सरि
सूर्योपासना एवं श्रद्धा के चार दिन

कार्तिक मास की अमावस के अंधकार को अपनी आस्था के असंख्य दीपों के प्रकाश से चीरकर हर हृदय को आलोकित करने वाले पंच दिवसीय पर्व दिवाली के ठीक छठे दिन मनाया जाता है छठ। छठ एक ऐसा पर्व है जिसमें ऊर्जा के अजस्रोत सूर्य के प्रति समर्पण, उपासना एवं आराधना के साथ ही अनुग्रह भाव भी शामिल हैं।

छठ एवं पौराणिक लोक कथाएं

भारत में व्यवस्थित रूप से ये लोक पर्व कब जनजीवन का अंग बना, इस संदर्भ में निश्चित रूप से कुछ कहना बेशक कठिन हो, किन्तु रामायण एवं महाभारत में भी इस पूजन के संदर्भ उपलब्ध हैं।

मान्यता है कि लंका विजय के उपरान्त रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम एवं माता सीता ने उपवास किया एवं सूर्यदेव की आराधना की और सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया। एक किंवदंती के अनुसार ऐतिहासिक नगर मुंगेर के सीताचरण नामक स्थान पर मां सीता ने छह दिनों तक रहकर सूर्य पूजा की थी। कहते हैं कि 14 वर्ष के वनवास के बाद श्री राम जब अयोध्या लौटे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि मुनियों के आदेश पर उन्होंने राजसूय यज्ञ करने का निर्णय लिया। इस यज्ञ के लिए मुदगल ऋषि को आमंत्रण भेजा गया किन्तु ऋषि ने भगवान राम एवं माता सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। जब ये दोनों आश्रम पहुंचे तो ऋषिवर ने इन्हें छठ पूजन के बारे में बताया और गंगाजल छिड़क कर माता सीता को पवित्र किया तथा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य देव की उपासना का आदेश दिया। तब यहीं रहकर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्य देव की उपासना की।

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