कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन करके पांचवें दिन तुलसी का विवाह करते हैं। तुलसी विवाह की यह पद्धति सर्वाधिक उत्तर भारत में प्रचलित है। इससे जुड़ी कुछ प्रचलित कथाएं भी हैं-
व्रत कथाः प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था । उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृन्दा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से भयभीत ऋषि व देवता भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा करने की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने काफी सोच-विचार कर वृन्दा का पतिव्रत धर्म भंग करने का निश्चय किया। उन्होंने योगमाया द्वारा एक मृत शरीर वृन्दा के घर के आंगन में फिकवा दिया, माया का पर्दा होने से वृन्दा को वह शव अपने पति का दिखाई दिया। अपने पति को मृत देख कर वह मृत शरीर पर गिरकर विलाप करने लगी।
उसी समय एक साधु उसके पास आए और बोले, 'बेटी, इतना विलाप मत करो, मैं इस मृत शरीर में जान डाल दूंगा।'
साधु ने मृत शरीर में जान डाल दी। भावातिरेक में वृन्दा ने उस मृत शरीर का आलिंगन कर लिया, जिसके कारण उसका पतिव्रत धर्म नष्ट हो गया। बाद में वृन्दाको भगवान का यह छलकपट ज्ञात हुआ। उधर उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृन्दा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया।
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तुलसी से दूर करें वास्तुदोष
हिन्दू धर्म में तुलसी का पौधा हर घर-आंगन की शोभा है। तुलसी सिर्फ हमारे घर की शोभा ही नहीं बल्कि शुभ फलदायी भी है। कैसे, जानें इस लेख से।
क्यों हुआ तुलसी का विवाह?
कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है, किंतु उत्तर भारत में इसका कुछ ज्यादा ही महत्त्व है। नवमी, दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना बड़ा ही शुभ माना जाता है।
बड़ी अनोखी है कार्तिक स्नान की महिमा
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बारह पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व सर्वाधिक है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसका नाम हैं सत्यः नानक
सिरवों के प्रथम गुरु थे नानक | अंधविश्वास एवं आडंबरों के विरोधी गुरुनानक का प्रकाश उत्सव अर्थात् उनका जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु नानक का मानना था कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। संपूर्ण विश्व उन्हें सांप्रदायिक एकता, शांति एवं सद्भाव के लिए स्मरण करता है।
सूर्योपासना एवं श्रद्धा के चार दिन
भगवान सूर्य को समर्पित है आस्था का महापर्व छठ । ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से सूर्य देवता मनोकामना पूर्ण करते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है, जिस कारण इस पर्व का नाम छठ पड़ा। जानें इस लेख से छठ पर्व की महत्ता।
एक समाज, एक निष्ठा एवं श्रद्धा की छटा का पर्व 'छठ'
छठ की दिनोंदिन बढ़ती आस्था और लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि कुछ तो विशेष है इस पर्व में जो सबको अपनी ओर खींच लेता है। पूजा के दौरान अपने लोकगीतों को गाते हुए, जमीन से जुड़ी परम्पराओं को निभाते हुए हर वर्ग भेद मिट जाता है। सबका एक साथ आकर बिना किसी भेदभाव के ईश्वर का ध्यान करना... यही तो भारतीय संस्कृति है, और इसीलिए छठ है भारतीय संस्कृति का प्रतीक।
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