क्यों हुआ तुलसी का विवाह?
Sadhana Path|November 2024
कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है, किंतु उत्तर भारत में इसका कुछ ज्यादा ही महत्त्व है। नवमी, दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना बड़ा ही शुभ माना जाता है।
राजेश शर्मा
क्यों हुआ तुलसी का विवाह?

कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन करके पांचवें दिन तुलसी का विवाह करते हैं। तुलसी विवाह की यह पद्धति सर्वाधिक उत्तर भारत में प्रचलित है। इससे जुड़ी कुछ प्रचलित कथाएं भी हैं-

व्रत कथाः प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था । उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृन्दा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से भयभीत ऋषि व देवता भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा करने की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने काफी सोच-विचार कर वृन्दा का पतिव्रत धर्म भंग करने का निश्चय किया। उन्होंने योगमाया द्वारा एक मृत शरीर वृन्दा के घर के आंगन में फिकवा दिया, माया का पर्दा होने से वृन्दा को वह शव अपने पति का दिखाई दिया। अपने पति को मृत देख कर वह मृत शरीर पर गिरकर विलाप करने लगी।

उसी समय एक साधु उसके पास आए और बोले, 'बेटी, इतना विलाप मत करो, मैं इस मृत शरीर में जान डाल दूंगा।'

साधु ने मृत शरीर में जान डाल दी। भावातिरेक में वृन्दा ने उस मृत शरीर का आलिंगन कर लिया, जिसके कारण उसका पतिव्रत धर्म नष्ट हो गया। बाद में वृन्दाको भगवान का यह छलकपट ज्ञात हुआ। उधर उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृन्दा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया।

Denne historien er fra November 2024-utgaven av Sadhana Path.

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