अपने बढ़ते बच्चे को लेकर आपकी भी यही शिकायत हो सकती है। आपको लग सकता है कि बच्चा इतना ज्यादा शांत क्यों है? या फिर वो आपसे अपने दिल की बात क्यों नहीं कहता है ? ऐसा तो नहीं कि वो किसी दिक्कत में है? या फिर आपसे ही कोई गलती हो गई हो जिस वजह से उसने अपने दिल की बातें आपसे करनी बंद कर दी हो? आपके सवाल का सीधा सा जवाब है- हां, इसमें आपकी ही गलती है। आपने अपने व्यवहार के चलते बच्चे से ऐसी दूरी बनाई है कि इसे पाटना अब बच्चे के लिए बहुत मुश्किल हो रहा है। वो अब इस दूरी को खत्म करने के बारे में सोचता ही नहीं है और अपनी ही दुनिया में खोया रहता है। पर, आप ये दूरी आसानी से कम कर सकती हैं। बच्चे की बेहतरी के लिए इस स्थिति को आप सुधार सकती हैं। कैसे होगा ये सब और बच्चे के इस स्वभाव के लिए कौन-सी वजहें हैं जिम्मेदार, आइए जानें:
पेरेंट्स की लड़ाई
पेरेंट्स का लड़ना आम सी बात है। कई बार पति-पत्नी के बीच मनमुटाव हो ही जाते हैं। अगर ये मनमुटाव अकसर हो रहे हैं और बच्चा ये सब देख रहा है तो समझ लीजिए कि वो आप दोनों से दूर होता जा रहा है। कुछ साल पहले हुई एक स्टडी भी यही कहती है । इस अध्ययन में ये पाया गया था कि छह महीने के बच्चे पर भी अभिभावक की लड़ाई का नकारात्मक असर होता है। इतना ही नहीं, 19 साल की उम्र तक यह असर बरकरार रहता है। वहीं, 2012 में जनरल चाइल्ड डेवलेपमेंट में छपी एक स्टडी कहती है कि मातापिता के बीच हुई लड़ाई का नकारात्मक असर किंडरगार्डेन से लेकर सातवीं क्लास तक के बच्चों पर सबसे ज्यादा होता है। अगर बच्चे को इस नकारात्मक प्रभाव से बचाना है तो उन्हें अपनी लड़ाइयों से दूर ही रखें।
कैसे असर डालती है पेरेंट्स की लड़ाई
बच्चे छोटी उम्र से ही पेरेंट्स के व्यवहार से सीखते हैं। पेरेंट्स को लड़ता देख अकसर बच्चे खुद में ही खोते जाते हैं। वो सोचते हैं कि पेरेंट्स खुद ही परेशान हैं, ऐसे में अपनी दिक्कत बता कर उन्हें और क्यों परेशान किया जाए। बच्चे अपनी तरफ से समझदारी दिखा रहे होते हैं, लेकिन इसमें वो पेरेंट्स से दूर होते चले जाते हैं।
आपका तनाव बच्चों तक
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