सलामत रहेंगी मासूम आंखें
Anokhi|August 20, 2022
ऐ से ऐनक पढ़ने वाली उम्र में ही आंखों पर चश्मे का भार आने लगा है। आपका बच्चा भी इस जमात का हिस्सा तो नहीं? इसको भांपने के लिए उसकी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखनी होगी। कैसे? बता रही हैं 
दिव्यानी त्रिपाठी
सलामत रहेंगी मासूम आंखें

पका लाडला आपकी आंखों का तारा है। पर, क्या आप जानती हैं कि उसी तारे की चमकदार आंखों पर खतरा अब ज्यादा बढ़ने लगा है। धुंधली नजर, बेचैनी, सिरदर्द, खराब ध्यान अवधि, गुलाबी आंखों के मामले बच्चों में अब पहले की तुलना में ज्यादा आ रहे हैं। एम्स के एक अध्ययन के मुताबिक मायोपिया यानी निकट दृष्टिदोष के मामले दोगुने हो गए हैं। यानी 7 फीसदी से करीब 13 फीसदी। अकेले भारत में 5 से 15 वर्ष के बच्चों में से 17 प्रतिशत बच्चे निकट दृष्टिदोष से पीड़ित हैं, जिसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है ज्यादा स्क्रीन टाइम। इसके पीछे अनुवांशिक कारण भी हैं। कई अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि आवश्यक प्राकृतिक रोशनी की कमी भी इस समस्या का कारण बन रही है। आंकड़े विचारणीय है। बच्चों में आंखों की समस्या के क्या-क्या हो सकते हैं लक्षण, आइए जानें:

सिर दर्द की शिकायत

सिर दर्द यूं तो किसी को भी हो सकता है। पर, अगर बच्चे को ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी आंखों पर दबाव डाला पड़ रहा है, तो इससे लंबे समय तक सिर दर्द रह सकता है। यह मुमकिन है कि सिर दर्द की यह समस्या बच्चे में चश्मे की जरूरत को बता रही हो।

पढ़ने के बाद थकान होना

अगर बच्चे को लगता है कि उसकी आंखों में जलन, खुजली या थकान हो रही है, तो यह आंखों की थकान है। एक बच्चे के लिए इन लक्षणों को नोटिस कर पाना मुश्किल हो सकता है। पर, अगर बच्चा पढ़ाई में पिछड़ रहा है या पढ़ने की गतिविधियों से बचने की कोशिश कर रहे हैं या फिर स्कूल से टीचर के माध्यम से आपको ऐसा कोई फीडबैक मिल रहा है, तो यह आंख की कमजोरी का लक्षण हो सकता है।

खेल में खराब प्रदर्शन

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