गिरते ढांचे और उठते गुबार का वह 12 सेकंड का वीडियो मानो प्रतीक बन गया कि बिल्डरों पर नकेल कसी जा सकती है, बशर्ते सरकारी और संवैधानिक तंत्र चौकस हो. देश के सबसे बड़े रियल एस्टेट मार्केट में से एक, दिल्ली-एनसीआर में उत्तर प्रदेश के नोएडा में सुपरटेक ट्विन टावर का ढहाया जाना यह भी संकेत दे गया कि बिल्डर- बाबूशाही नेता सांठगांठ से कैसे कोरा अवैध निर्माण और आम लोगों की गाढ़ी कमाई की लूट खुल्लमखुल्ला दशकों तक जारी रहती है. शुक्र मनाइए कि देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले से न सिर्फ इस गोरखधंधे की इमारत ढहाई गई, बल्कि समूचे रियल एस्टेट कारोबार पर नए सिरे से विचार करने और नए कानूनी कवच की जरूरत भी महसूस हुई, इससे नोएडा जैसे तमाम प्राधिकरणों की कार्यशैली पर भी सवाल उठे. नोएडा के सेक्टर 93ए में सुपरटेक ने प्राधिकरण के अधिकारियों की मिलीभगत से ये टावर खड़े कर लिए थे. सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के रेजिडेंट्स ने बिल्डर बाबू मिलीभगत के पूरे सिस्टम से लड़कर 10 साल लंबी कानूनी जंग में जीत हासिल की.
नोएडा यानी न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी की कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है: "नोएडा एक भ्रष्ट निकाय है. इसकी आंख, कान, नाक और यहां तक कि चेहरे से भी भ्रष्टाचार टपकता है. जब आपसे रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने बिल्डिंग का सैंक्शन प्लान मांगा तो आपने सुपरटेक से पूछा और उसने मना कर दिया तो आपने बिल्डिंग प्लान नहीं दिया. आप सुपरटेक की मदद ही नहीं कर रहे थे, आपकी उसके साथ मिलीभगत है." न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का यह ऑब्जर्वेशन 4 अगस्त, 2021 को सुपरटेक ट्विन टावर मामले की सुनवाई खत्म होने के बाद फैसला सुरक्षित रखने के दौरान का है.
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