भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई वाली केंद्र सरकार की स्वदेश में विकसित आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों को बाजार में उतारने की महत्वाकांक्षी योजना को कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है. सरकार इसे तिलहन में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में अहम कदम के तौर पर देखती है. विडंबना यह कि इसका विरोध करने वालों में भाजपा के वैचारिक स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके सहयोगी संगठनों के नेता भी हैं. समझा जाता है कि नवंबर के पहले हफ्ते में आरएसएस के एक शीर्ष नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दफ्तर से संपर्क साधा और संघ तथा उसके सहयोगी संगठनों की आपत्तियां बतला दीं. बाद में भारतीय किसान संघ (बीकेएस) और स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसे रोकने के लिए हस्तक्षेप करने को कहा. बीकेएस किसानों के बीच काम करने वाला संघ से जुड़ा संगठन है, तो एसजेएम संघ का आर्थिक थिंक-टैंक है.
इस सबके बीच खाद्य सुरक्षा कार्यकर्ताओं की याचिका पर कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर को केंद्र सरकार को वह सारा डेटा और विशेषज्ञों के निष्कर्ष पेश करने का निर्देश दिया जिनके आधार पर धारा मस्टर्ड हाइब्रिड 11 (डीएमएच-11) के नाम से जानी जाने वाली जीएम सरसों की किस्म को जारी करने का फैसला लिया गया है. एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और सुधांशु धूलिया की पीठ को भरोसा दिलाया कि फैसला होने तक सरकार कोई "ठोस कदम" नहीं उठाएगी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जीएम खाद्य पदार्थ उन जीवों से निकाले जाते हैं जिनकी आनुवंशिक सामग्री (डीएनए) को अप्राकृतिक ढंग से संशोधित या रूपांतरित कर दिया जाता है. जीएम फसलें पौधों के रोगों को रोककर या शाकनाशकों के प्रति सहनशक्ति बढ़ाकर पैदावार बढ़ाने का दावा करती हैं.
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