पश्चिम दिल्ली में रहने वाली मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव 41 वर्षीया कुसुम नेगी दफ्तर की मीटिंग में थीं कि तभी उन्हें गर्दन के पीछे तेज दर्द महसूस हुआ. फटाफट उन्हें इमरजेंसी रूम में ले जाया गया. गर्दन की पट्टी और दर्द की दवाओं से फौरी राहत मिली, पर डॉक्टरों को हड्डियों या मांसपेशियों में ऐसा कुछ न मिला, जिससे दर्द की वजह पता चल पाती. नेगी ने तनाव का जिक्र किया, और बात समझ आने लगी. चार महीने पहले हुई इस परेशानी को याद करके नेगी कहती हैं, ‘‘हड्डियों के एक डॉक्टर ने मुझे बताया कि तनाव से सूजन हो सकती है, जिससे मांसपेशियों में जकड़न आ सकती है. मन शांत नहीं लग रहा था, पर कभी सोचा नहीं था कि इससे मांसपेशियों में ऐंठन आ सकती है. नेगी की तरह कई और लोगों को भी पता चल रहा है कि तनाव के उनके शरीर पर कैसे-कैसे असर पड़ सकते हैं. निमहांस (राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान) बेंगलूरू के पूर्व प्रमुख डॉ. बी. एन. गंगाधर बताते हैं, "तनाव अब केवल मानसिक परेशानी नहीं रहा. यह ढेर सारी शारीरिक परेशानियों से जुड़ा है." पिछले दो साल में वैज्ञानिक अनुसंधानों ने हमें सचेत किया कि तनाव सीधे या घुमा-फिराकर हृदय रोग, ब्रेन स्ट्रोक, डायबिटीज, कैंसर, फेफड़े की बीमारियों, लीवर सिरोसिस और बांझपन के अलावा व्यसन, मोटापे और आत्महत्या की ओर ले जाने वाले अवसाद में योगदान दे रहा है और मौत के बड़े कारणों में एक है. फिर भी लोग तनाव को तब तक परेशानी नहीं मानते जब तक यह ज्यादा घातक बीमारियों में प्रकट नहीं होता. गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में एंडोक्राइनोलॉजी और डायबिटोलॉजी प्रैक्टिस के डायरेक्टर डॉ. सुनील कुमार मिश्रा कहते हैं, “लोग आम तौर पर किसी चीज को तब तक गंभीरता से नहीं लेते जब तक वह संकट बनकर खड़ा नहीं हो जाता. शरीर में तनाव को माप नहीं सकते, इसलिए जब कोई बड़ी घटना घटती है तभी आपको अपनी बेहद तनावपूर्ण जीवनशैली का एहसास होता है."
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